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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ जंबुद्दी पन्नत्ती - ४ /११९ दुतीसाए य सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जयंतस्स दारस्स जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्द समप्पेति सीतोदा णं महानई पवहे पत्रासं जोयणाई विक्कंभेणं जोयणं उव्वेहेणं तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्ढमाणी-परिवड्ढमाणी मुहमूले पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उव्वेणं उमओ पासिं दोहिं पउमबरवेइयाहिं दोहिं य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता निसढे जं भंते वासहरपव्बए कति कूड़ा पन्नत्ता गीयमा नव कूड़ा पत्रत्ता तं जहा सिद्धायतणकूड़े निसढकूड़े हरिबासकडे पुच्वविदेहकूडे हरिकूडे धिइकूड़े सीओदाकूडे अवरविदेहकूडे रुयगकूडे जो चेव 'चुल्लहिमवंतकूडाणं उच्चत्त- विक्खंभ-परिक्खेवो य पुच्ववणिओ रायहाणी य सच्चैव इहंपि नेयव्वा सेकेणणं भंते एवं बुइ-निसहे वासहरपव्वए निलहे वासहरपव्वए गोयमा निसणं वासहरपव्वए बहवे कूड़ा निसहसंठाणसंठिया उसभसंठाणसंठिया निसहे सत्य देवे महिड्ढीए जाव पतिओवमट्टिईए परिवसइ से तेणट्टेणं गोयमा एवं बुच्चइ० 1८५1-84 (१४०) कहि णं भंते जंबुद्दीवे दीवे महा विदेहे नामं वासे पन्नत्ते गोयमा नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं पुरत्थिमलवण समुद्दस्स पञ्चत्थिमेणं पञ्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं एत्य णं जंबुद्दीये दीवे महाविदेहे नामं यासे पत्रतेपाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुट्ठे-पुरथिमिल्लाए जाव पुढे पञ्चत्थमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठे तित्तीसं जोयणसहस्साई छा चुलसीए जोयस चत्तारिय एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं तस्स बाहा पुरत्थिमपञ्चत्थिमेणं तेत्तीसं जोयणसहस्साई सत्त य सत्तसद्वे जोयणसए सत्त य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं तस्स जीवा बहुमज्झसभाए पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दे पुट्ठा एवं पद्यत्थिमिल्लाए जाब पुट्ठा एगं जोयण-सयसहस्सं आयामेणं तस्स धणुं धणुपट्ट उभओ पासि उत्तरदाहिणेणं एगं जोयणसयसहस्सं अड्डा - वण्णं जोयणसहस्साई एगं च तेरसुत्तरं यस सोलस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं महाविदेहे णं वासे चउच्विहे चउप्पडोयारे पन्नत्ते तं जहा- पुव्वविदेहे अवरविदेहे देवकुरा उत्तरकुरा महाविदेहस्स णं भंते वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते गोयमा बहुसमरमणिजे भूमिभागे पनत्ते जाव कत्तिपेहिं चेद अकत्तिमेहिं चेद महाविदेहे णं भंते वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पत्रत्ते गोयमा तेसि णं मणुयाणं छव्विहे संघयणे छव्विहे संठाणे पंचधणुसयाई उडूढं उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्यकोडी आउयं पार्लेति पालेत्ता अप्पेगइया निरयगामी जाव अप्पेगइया सिज्यंति जाव अंतं करोति सेकेणणं भंते एवं वुबइ-महाविदेहे वासे महाविदेह वासे गोयमा महाविदेहे णं वासे भरहेरवय- हेमवय हेरण्णवय हरिवास-रम्परावासेर्हितो आयाम विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं विच्छिण्णतराए चेव विपुलतराए चैव महंततराए चैव सुष्पमाणतराए चैव महाविदेहा चत्थ मणूसा परिवसंति महाविदेहे यत्य देवे महिड्ढीए जाव पतिओवमट्ठिईए परिवसइ से तेजद्वेणं गोयमा एवं दुइ-महाविदेहेवासे महाविदेहे वासे अदुत्तरं च णं गोयमा महाविदेहस्स वासस्स सासए नामधेजे पन्नत्ते-जं न कयाइ नासि न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुबे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निचे ।८६/-86 (१४१ ) कहि णं भंते महाविदेहे वासे गंधमायणे नामं वक्खारपव्वए पत्रत्ता गीयमा नीलयंतस्स बासहरपव्वयस्स दाहिणेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपञ्चत्थिमेणं गंधिलावइस्स विजयस्स For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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