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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ जंबूदीय पन्नत्ती-३ / ७६ चित्तमाणंदिए [ नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए] करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कट्टु एवं सामी तहत्ति आणाए विणएणं वयणं) पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता भरस्सरणी अंतियाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे जेणेव पोस- हसाला तेणेव उपागच्छ उवागच्छित्ता दब्मसंथारगं संघरइ [संथरिता दब्भसंधारगं दुरुहइ दुरुहिता कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पण्डिइ पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव अट्ठमभसंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव मणधरे तेणेय उवागच्छइ उवागच्छित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल- पायच्छिते सुद्धप्यावेसाई मंगलाई थत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मणघराओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुयारस्स कवाडा तेणेच पहारेत्य गमणाए तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स वहवे [राईसर-तलवर-माइंबिय कोडुंबिय - इटम सेट्ठिसेणा इ] - सत्यवाहष्पभियओ-अप्पेगइया उप्पलहत्यगया जाव अप्पेगइया सहस्सपत्तहत्यगया सुसेणं सेणावर पिटुओ-पिटुओ अनुगच्छंति तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहूओ खुजाओ चिल्लाइयाओ. जाव इंगियचिंतिय-पत्थिय-विआणियाओ निउणकुसलाओ विणीयाओ अप्पेगइयाओ बंदणकलसहत्थगयाओ जाव सुसेणं सेणावई पिटुओ-पिट्टओ अणुगच्छति तए णं से सुसेणे सेणावई सव्विड्ढीए सव्वजुईए जाव निग्घोसणाइएणं जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुबारस्स कवाडा तेणेव उपागच्छइ उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ करेत्ता लोमहत्यगं परामुसइ परमुसित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लरस दुदारस्स कवाडे लोमहत्येणं पमज्जइ पमजित्ता दिव्याए उदगधाराए अनुक्खेइ अब्भुक्त्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितले चचए य दलयति दलयित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहि य मल्लेहि य अधिणे अधिणेत्ता पुष्फारुहणं [मल्ल-गंध-वण्ण]-चुण्णवत्थारुहणं करेइ करेता आसत्तोसत्तविपुलवट्ट-वग्धारियमल्लदाभकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुष्फपुंजीवयारकलियं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूबमघमत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधिययं गंधवट्टिभूयं ] करेइ करेत्ता अच्छेहिं सण्हेहिं सेतेहिंरययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठट्ठ मंगलए आलिहइ तं जहा सोत्थिय सिरिवच्छ [ नंदियावत वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्यण अट्ठमंगलए] आलिहित्ता काऊण करेइ उवयारं किं ते पाडल-मल्लिय-चंपग असोग- पुण्णाग चूयमंजरि - नवमालिय-बकुल-तिलगकणवीर कुंद-कोजय कोरंटय- पत्त-दमणय-वरसुरहिसुगंधगंधियस्स कयग्ग-हगहिय-करयलपष्पट्ट विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहपमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्यभवइरवेरुलियविमलदंडं [कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्कूकतुरुक्क धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूपवर्हि विणिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छ्रयं पग्गहेतु पयते। धूवं दलयइ दलयित्ता वामं जाणुं अंचे अंचेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि क कवाडाणं पणामं करेइ करेत्ता दंडरयणं परामुसइ तए णं तं दंडरयणं पंचलइयं वइरसारमइयं चिमासणं सव्वसत्तुसेण्णाणं खंधावारे नरवइस्स गड-दरि-विसम-पदभार - गिरीवर पवायाणं समीकरणं संतिकरं सुभकरं हितकरं रण्णो हियइच्छियमणोरहपूरगं दिव्यमप्पडिहयं दंडरयणं गहाय सत्तट्ठ पयाई पच्चीसक्कइ पचोसक्कित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिलुस्स दुबारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया-महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडेइ तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुदारस्स सुसेणसेणा For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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