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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बकूखारो-३ २५ सहसणि-नाएणं महया इड्ढीए जाव महया धरतुरियजमगस- मगपवाइएणं संख-पणव- पडगमेरि झल्लर- खरमुहि-मुरव - मुइंग-दुंदुहिनिग्धोसणाइएणं जेणेव आउहघरसात्ता तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता आलए चक्करयणस्स पणामं करेइ करेत्ता जेणेय चक्करयणे तेणेव उचागच्छ उवागच्छित्ता लोमहत्ययं परामुसइ परामुसित्ता चक्करयणं पमइ पमञ्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अन्मुकखेइ अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेमं अनुलिंपइ अनुलिंपित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मलेहि य अचिणइ पुप्फारुहणं मल्ल-गंध-वण्ण चुण्ण-वत्थारुहणं आभरणारुहणं करेइ करेत्ता अच्छेहिं सहेहि सेतेहिं रययामएहिं अच्छरसातं-डुलेहिं चक्करयणस्स पुरओ अड्ड मंगलए आलिएइ तं जहा- सोत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त यद्धमाणत मद्दासण मच्छ कलस दप्पण अट्टमंगलए आलिहित्ता काऊणं करेइ उवयारं किं ते पाडल-मल्लिय-चंपग असोग- पुन्नग-चूयमंजरिनवमालिय-बकुल-तिलग-कणवीर कुंद - कोज कोरंटय पत्त-दमणय- वरसुरहिसुगंधगंधियस्स कयग्गहगहिय-कर्यलपद्मविष्यमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ-वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचणमणि- रयणमत्तिचित्तं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क धुवंगधुत्तमाणुविद्धं च धूमवर्हि विणिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेतु पयते धूवं दइ दहित्तासत्तट्ठपयाई पोसक्कइ पञ्चोसक्कित्ता वामं जाणु अंचेइ जाव पणामं करेइ करेत्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवडाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याधिमुहे सण्णसीयइसणिसीयित्ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुपिया उस्सुक्कं उक्करं उक्कडं अदिजं अमिनं अभडप्पवेतं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइञ्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अनुसुयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पभुइयपक्कीलियसपुरजण जाणवयं विजयवेजइयं चक्करयणस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिष्यामेव पचष्पिणह तए णं तओ अट्टारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं बुत्ताओ समाणीओ ट्टाओ जाव विणणं वयणं पडिसुर्णेति पडिसुणेता मरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमेति पडिणिक्खमेत्ता उस्सुक्कं उक्करं जाव अड्डाहियं महामहिमं करेति य कारवेति य करेत्ता य कारवेत्ता य जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति उयागच्छिता तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति | ४४|-49 (६१) तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्टाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्यतुडियसद्दसण्णिणाएवं आपूरेंते चेव अंबरतलं विणीयाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गचित्ता गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसि मागहतित्याभिमुहे पयाते यावि होत्या तए णं से भरहे राया तं दिव्यं चक्करयणं गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्याभिमुहं पयातं पासइ पासित्ता हट्ठतुडजाव हियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुम्पिया आभिसेक्कं हस्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेह एतमाणत्तियं पञ्चष्पिणह तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पञ्चप्पिणंति तए णं से भरहे राया जेणेव पजणघरे तेणेव उवागच्छइ उदागच्छित्ता मन्त्रणधरं अनुपविसइ अनुपविसित्ता समुत्त- जालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवल - महापेहनिग्गए इव जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवरवाहण-मड For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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