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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जंबुद्दीव पन्नत्ती-३/५८ सभितरबाहिरियं आसिय-संमञ्जिय-सित्त-सुइग-संपट्ट-रत्यंतरवीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहरागवसण ऊसियझयपडागाइपडागमंडिय लाउल्लोइयपहियं गोसीससरसरतदद्दरदिण्णपंचगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंचणघडसुकय-जाव गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवहिभूयं करेह कारवेह करेत्ता कारवेत्ताय एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह तएणं से कोडुबियपुरिसा भरहेणंरपणा एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति पडिसुणेता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणि जाव करेत्ता कारवेत्ता य तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति तए णं से परहे राया जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता माणधरं अणुपविसइ अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रसणिज्जे हाणमंडवंसि नाणामणिरयण-भत्तिवित्तसि पहाणपीढंसि सुहणिसणे सुहोदएहिं गंधोदएहि पुणोदएहि सुद्धोदएहि य पुग्ने कल्लाणगपवरपक्षणविहीए मलिए तत्थ कोउयसएर्हि बहुविहेहि कल्लाणगपवरमजणावसाणे पम्हलसुकुमाल- गंधकासाइय-लूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंदुए सुइमाला-चण्णग-विलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तसुकयसोहे पिणद्धगैविज्जगअंगुलिज्जग-ललितंगयललियकयाभरणे नानामणिकडगतुडिययंभियभुए अहियरूव-सस्सिरीए कुंडलउजोइयाणणे मउडदित्तसिरिए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलंबमाणसुकयपडउत्तरिले मुद्दियापिंगलंगुलीए नाणामणिकणग-विमल-महरिए निउणोविय-मिसिमिसेंत-विरइयसुसिलिढविसिद्धलट्ठसंठियप-सत्यआविद्धवीरलए किं वहुणा कप्प-रुक्खए चैव अलंकियविभूसिए नरिंदै सकोरंट [मल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं] चउचामरवालवीइअंगे मंगलजयसद्दकयालोए अणेगगणणायग-दंडनायग-जाव दूय-संधिवालसद्धि संपरियुडे घवल-महामेहणिग्गए इस [गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मझे] ससिव्य पियदंसणे नरवई धूवपुप्फगंधमलहत्तगए मजणघराओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव आउहघरसाला जेणेव चक्करयणे तेणामेव पहारेत्थ गमणाए तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहवे ईसर-जाव पभितओ-अप्पेगइया पउमहत्थगया जाव अप्पेगइया सहस्स- पत्तहस्थगया भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्टओ अणुगच्छंति, तएशंतस्सभरहस्सरण्णो बहूओ।४४-१1-43-1 (५९) खुल्ल चित्लाइ वामणि वडभीओ बब्बरीपउसियाओ जोणियपल्लवियाओ ईसिणिय थारुकिणियाओ (६०) लासिय लउसिय दमिती सिंहलि तह आरबी पुलिंदीय पक्कणि वहलि मुरंडी सबरीओ पारसीओय (५९) तेल्ले कोट्ठसमुग्गे पत्ते चोए य तगरमेलाय हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासवसमुग्गे 119911-3 (६०) अप्पेगइयाओ वंदणकलसहयगयाओ भिंगार-आदंस-थाल-पाति-सुपइट्ठगवायकरग-रयण करंड-पुष्फचंगेरी-मल्ल-वण्ण-चुण्ण-गंधहत्यगयाओ वत्थ-आमरणलोमहत्थयचंगेरी-पुष्फपडलहत्यगयाओ जाव लोमहत्थगपडलहत्यगयाओ अप्पेगइयाओ सीहासणहत्थगया ओ छत्त-चामर-हत्थगयाओ तेल्लसमुग्गयहत्यगयाओ कोहसमुग्णयहत्थगयाओ जाव सासयसमुग्णयहत्यगयाओ अप्पेगइयाओ तालियंटहत्यगयाओ धूवकडुच्छयहत्यगयाओ भरहं रायाणं पिडओ-पिट्ठओ अणुगच्छंति तए णं से भरहे राया सव्यिड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्यायरेणं सव्दविभूसाए सव्वविभूईए सञ्चवत्य-पुष्फ-गंध-मल्लालंकारविभूसाए सव्युतरिय. ॥९॥-1 ||१०||-2 For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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