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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलाये। समप्पेइ-एवामेव सपुव्यावरेणं जंबुद्दीवे दीवे महादिदेहे वासे दस सलिलासयसहस्सा घउसद्धिं च सलिलासहस्सा भवंतीतिमक्खायं जंबुद्दीवे णं भंते दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दक्खिणेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरत्यिमपञ्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुदं समप्पेति गोयमा एगे छपणउए सलिलासयसहस्से पुरथिमाभिमुहा लवणसमुदं समति गोयमा एगे छण्णउए सलिलासयसहस्से पुरथिमपञ्चत्यिमाभिमुहे लवणसमुई समप्पेइ जंबुद्दीवेणं मंते दीवे मंदरस्स पव्ययस्स उत्तरेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरथिमपञ्चत्यिमाभिमुहा लवणसमुई समति गोयमा एगे छण्णउए सलिलासयसहस्से पुरस्थिमपञ्चत्यिमाभिमुहे लवणसमुहं समप्पेई जंबुद्दीवे णं भंते दीवे केवइया सलिलासयसहस्सा पुरथिमाममुहा लवणसमुदं समप्पेति गोयमा सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठवीसं च सहस्सा पुरथिमाभिमुहा लवणसमुदं समप्पेति जंबुद्दीवेणंभंते दीवे केवइया सलिलासयसहस्सा पञ्चस्थिमाभिमुहा लवणसमुदं समति गोयमा सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठावीसं च सहस्सा पञ्चस्थिमाभिमुहा लवणसमुदं समति-एवामेव सपुव्यायरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिलासयसहस्सा छप्पण्णंचसहस्सा भवंतीतिमक्खायं ।२६।-125 .छदो बक्सारो समतो. सत्तमो-वक्खासे (२५०) जंबुद्दीवेणं भंते दीवे कइचंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति कइ सूरिया तबइंसु तवेति तविस्संति केवइया नक्खता जोगं जोएसु जोएंति जोएस्संति केवइया महागहा चारं चरिंसु वरंति चरिस्संति केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोभं सोभिंसु सोभंति सोभिसंति गोयमा दो चंदा पमासिंसुपभासंति पभासिस्संति दो सूरिया तवइंस तवेति तविस्संति छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसुजोएंति जोएस्संति छावत्तांमहागहसयंचारं चरिसुचरंति चरिस्संति।१२७126 (२५१) एगंच सयसहस्सं तेतीसं खलु मवेसहस्साई नवय सया पत्रासा तारागणकोडिकोडिणं ॥८३।। (२५२) कइणमंते सूरमंडला० एगे चउरासीएमंडलसए पत्रत्तेजंबुद्दीवेणंभंते दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला० जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता एस्थ णं पन्नट्ठी सूरमंडला पन्नत्ता, लवणे णं मंते समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला० लवणे णं समुद्दे तिणि तीसे जोयणप्तए ओगाहिता एत्य णं एगूणवीसे सूरमंडलसए पनत्ते-एवामेव सपुब्वायरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणेय समुद्दे एगे युलसीए सूरमंडलसए भवतीतिमक्खायं।१२८1-127 (२५३) सव्यमंतराओ णं मंते सूरमंडलाओ केवइयं अबाहाए सब्बाबाहिरए सूरमंडले पत्रत्ते गौयमापंचदसुत्तरे जोयणप्तए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पत्रते।।२९१-228 (२५४) सूरमंडलस्स णं मंते सूरमंडलस्स य केवइयं अबाहाए अंतरे पत्रत्ते गोयमा दो-दो जोयणाइंअबाहाए अंतरे पन्नत्ते॥१३०|-129 (२५५) सूरमंडलेणं मंते केवइयं आयाम-विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते गोयमा अडयालीसं एगसद्विभाए जोयणस्स आयाम-विस्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवणं चउवीसं एगसहियाए जोयणस्सबाहल्लेणं पन्नत्ते।१३१)-130 (२५६) जंबुद्दीवे णं मंते दीवे मंदरस्स पव्ययस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्यंतरे सूरमंडले पन्नत्ते गोयमा चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्यंतरे सूरमंडले For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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