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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुवारी- ५ (२४०) तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए तावत्ती एहि चउहिं लोगपालेहिं तिर्हि परिसाहिं सत्तर्हि अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं चत्तालीसाए आयरक्खदेसाहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे तेहिं साभाविएहिं वेउब्विएहिं य वरकमलपट्टणेहिं सुरभिवरवारिपडिपुन्नेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पवपिहाणेहिं करयलपइवणेहिं करयलसूमालपरिग्गहिएहिं अट्टसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेजाणं जाब सव्वोदएहिं सव्यमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्यएहिं सच्विड्ढीए जाय दुंदुहिणिग्धोसनाइयरवेणं महया-महया तित्थयरा भिसेणं अभिसिंचइ तए णं सामिस्स महया महया अभिसेयंसि वट्टमाणंसि इंदाइया देवा छत्तचामरकलसधूवकडुच्छुयपुष्पगंध जाव हत्यगया हडतुट्ट-चित्तमाणंदिया जाय वज्रसूलपाणी पुरओ चिट्टति पंजलिउडा एवं विजयानुसारेणं जाव अप्पेगइया देवा आसिस - संमजिओबलित्तं सित्तसुइसम्मट्ठरत्थंरचणवीहियं करेति जाय गंधवट्टेभूयं अप्पेगइया हिरण्णवासं घासंति एवं सुवण्ण-रयण-वइर- आभरण-पत्तपुप्फ-फल- बी-मल्ल-गंध- यण्ण जाव चुण्णावासं वासंति अप्पेगइया हिरण्णविहिं माएंति एवं जाव चुणविहिं भाति अप्पेगइया चउव्विहं वज्रं वाएंति तं जहा-ततं विततं धणं झुसिरं अप्पेगइया चव्विहं गेयं गायंति तं जहा उक्खित्तं पयत्तं मंदं रोइंदगं अप्पेगइया चउब्विहं नहं नच्चंति तं जहाअंचियं दुयं आरभई भसोलं अप्पेगइया चउव्विहं अभिनयं अभियंति तं जहा दिवंतियं पाडियंतियं सामण्णओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं अप्पेगइया बत्तीसइविहं दिव्दं नट्टविर्हि उवदंसेति अप्पेगइया उपनिवयं निवयउप्पयं संकुचियपसारियं जाव भंतसंभंतं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेतेि अप्पेगइया पीर्णेति एवं बुक्कारेति तंडवेंति लार्सेति अप्फोर्डेति वग्र्गति सीहणायं नदंति अप्पेगइया सव्वाई करेति अप्पेगइया हयतेसियं एवं हत्थिगुलगुलाई रहयणधणाइयं अप्पेगइया तिण्णिवि अप्पेगइया उच्छोलेति अप्पेगइया पच्छोलेंति अप्पेगइया तिवई छिंदंति अप्पेगइया तिणिवि अप्पेगइया पायदद्दरपं करेति अप्पेगइया हक्कारेति एवं पुक्कारेति यक्कारेतिं ओवयंति उप्पयंति परिवयंति जलंति तवंति पतवंति गांति विजुयायति वासंति अप्पेगइया देवुक्कलियं कर्तेते एवं देवकहकर गं करेति अप्पेगइया दुहुदुहगं करेति अप्पेगइया विकियभूयाई रुवाई विउव्विता पणचंति एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाय सव्यओ समंता आधावेति परिधावेति 19221-121 (२४१) तए णं से अधुइंदे सपरिवारे सार्वि तेणं महया - महया अभिसेएणं अभिसिंचइ अभिसिंचिता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेद वद्धावेत्ता ताहिं इट्ठाहिं जाव जयजयसद्दं पउंजइ परंजिता जाव पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लूहेइ लूहेत्ता एवं जाय कप्परुक्खगं पिव अलंकिय-विभूसियं करेइ करेत्ता नट्टविहिं उवयंसे उवदंसेत्ता अच्छेहिं सण्हेहिं रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अट्ठमंगलगे आलिहइ [तं जहा ] ।१२३-१/-122-1 (२४२) दप्पण मद्दासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छा १५ सोत्थिय नंदावत्ता लिहित्ता अट्ठ मंगलगा |८०|1-1 (२४३) [काऊण] लिहिऊण करेइ उययाएं किं ते पाडल-मल्लिय-चंपग असोग- पुण्णागचूयमंजरि - नव-मालिय- बकुल-तिलग-कणवीर कुंद-कोजय कोरंट-पत्त-दमणग-वरसुरभिगंधगंवियरस कयग्गहिय-करयलपब्भठ्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्व चित्तं जण्णु For Private And Personal Use Only
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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