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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७०) वइराड वछ वरणा अच्छा तह मत्तियावइ दसण्णा सुत्तीमई य चेदी वीइमयं सिंधुसोवीरा ॥११६||-111 (१७१) महुरायसूरसेणा पादा भंगीय पासपुरि वडा सावथी य कुणाला कोडीयरिसंचलाढाय ||११७11-112 (१७२) सेयविया विय नयरी केयइअद्धं च आरियं भणितं एयुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं राम-कण्हाणं ११८11-113 (१७३) सेत्तं खेत्तारिया, से किंतं जातिआरिया -छब्बिहा पन्नतातं।३७-२-87-2 (१७४) अंवट्ठा य कलिंदा विदेहा वेदगा इय। हरिया चुंचुणा चेवछ एया इमजातिओ ||११९||-114 (१७५) सेत्तं जातिआरिया, से किंतंकुलारिया-छव्विहा पत्रत्ता तंजहा उग्गा मोगा राइण्णा इक्खागा नाता कोरब्बा सेत्तं कुलारिया, से किंतं कम्मारिया-अणेगविहा पन्नत्ता तं जहा-दोस्सिया सोत्तिया कप्पासिया सुत्तवेयालिया भंडवेयालिया कोलालिया नादावणिया जे यावण्णे तहप्पगारा सेतं कम्मारिया, से किं तं -सिप्पारिया अणेगविहा पत्रत्ता तंजहा-तुण्णागा तंतुवाया पट्टगारा देयडा वरुट्टाछव्दिया कट्ठपाउयारा मुंजपाउयारा छत्तारा वज्झारापोत्थारा लेप्पारा चित्तारा संखारा दंतारा भंडारा जिब्भगारासेल्लरा कोडिगारा जे यावण्णे तहप्पगारा से तंसिप्पारिया, से किंतंभासारिया-जे णं अद्धमागहाए भासाए भासिति जन्य वि यणं बंभी लिवी पवत्तइ बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेक्खविहाणे पत्रते तं जहा-बंभी जवणाणिया दोसापुरिया खरोट्टी पुक्खरसारिया भोगवईया पहराईयाओ य अंतक्खरिया अक्खरपुट्ठिया वेणइया निण्हइया अंकलिवी गणितलिवी गंधवब्वलिवी आयंसलिवी माहेसरी दामिली पोलिंदी सेतंभासारिया, से किं तं नाणारिया-पंचविहा पन्नता तं जहा-आभिणियोहियनाणारिया सुयनाणारिया ओहिनाणारिया मणपज्जवनाणारिया केवलनाणारिया से तं नाणारिया, से किं तंदसणारिया-दुविहा पन्नता-सरागदसणारिया य वीयरागदंसणारियाय, से किंतं सरागदसणारिया-दसचिहापत्रत्ता -३७-३।-373 (१७६) निस्सागुवएसरुई आणारुइ सुत्त-बीयरुइ मेव अहिगम-वित्यारसई किरिया-संखेव-धम्मरुई ॥१२०।-115 (१७७) भूयत्येणाधिगया जीवाजीया य पुनपावंच सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥१२१11-116 (१७८) जो जिणदिवे भाव चविहे सद्दहाइ सयमेव एमेव नन्नह ति यनिस्सप्णरुइ ति नायब्बो ॥१२२||-117 (१७९) एते चेव उ मावे उयदिढे जो परेण सद्दहइ छउपत्थेणं जिणेण व उवएसरुइ ति नायव्यो (१८०) जो हेउमयाणतो आणाए रोयए पवयणं तु एमेव नन्नह त्तिय एसो आणारुई नाम (१८१) जो सुत्तमहिलंतो सुएणओगाहई उ सम्मत्तं अंगेण बाहिरेण व सो सुतरुइत्ति नायव्यो (१८२) एगपएणेगाइं पदाईजो पसरई उ सप्मत्तं उदए ब्व तेल्लबिंदू सो वीयरुइत्ति नायब्वो ॥१२६11-121 11१२३1-116 ॥१२४||-119 ॥१२५||-120 For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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