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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ पन्नवणा- २४ / / /५४६ एगत्त- पोहतेहिं भाणियव्या वैयणिलं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति गोयमा सतविहबंध या अडविहबंध वा छव्विहसंघए वा एगविहबंधए वा एवं मणूसे वि सेसा नारगादीया सत्तविहबंधगाय अट्ठविहबंधगा य जाव वेमाणिए जीवा णं भंते वेयणिअं कम्पं पुच्छा गोयमा सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधना य अहवा सत्तविहबंधना य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अहवा सत्तविह- बंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अवसेसा नारगादीया जाव वेमाणिया जाओ नाणावरणं बंधमाणा बंयंति ताहिं पाणियव्या नवरं, मणूसा णं भंते वेदमिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्पपगडीओ बंधति गोयमा सच्चे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगाय अट्ठविहबंधए य अहवा सत्तविहबंधना य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य अहवा सत्तविहंबंधगा य एगविहबंधना य छव्विहबंधगा य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधना य अडवितबंधए य छव्विहबंधए य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंध य छव्विहबंधगा य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अडविहबंधगा य छव्विहबंधए य अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठचिहबंधगा य छव्विहबंधगा य एवं नव भंगा, मोहणिज्जं कम्मं बंधमाणे पुच्छा गोयमा जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो जीयेगिंदिपा सत्तविहबंधगा वि अडविहबंधना वि जीवे णं भंते आउयं कम्मं बंधमाणे पुच्छा गोयमा नियमा अठ्ठ एवं नेरइए जाव वेपाणिए एवं पुहत्तेण वि नाम- गोय- अंतराय बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति गोयमा जाओ नाणावरणिजं बंधमाणे बंधइ ताहिं माणियव्यो एवं नेरइए विजाब वैमाणिए एवं पुहतेणं वि माणियव्वं ॥ ३००/-299 • उवीसह पयं समत्तं । | पंचवीसइमं - कम्मबंधवेयपयं (५४७) कति णं मंते कष्मपगडीओ पन्नत्ताओ गोयमा अट्ठ कम्मपगडीओ पत्रत्ताओ तं जहा नाणावाणिज्जं जाव अंतराइयं एवं नेरइयाणं जाव वैमाणियाणं जीवे णं भंते नाणावरणिजं कम्मं धमा कति कम्मपगडीओ वेदेति गोयमा नियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेति एवं नेरइए जाव माणिए एवं पुत्त्रेण वि एवं वेयणिज्जवज्रं जाव अंतराइयं जीवे णं भंते वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्पपगडीओ वेदे गोयमा सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयए वा चउव्विश्वेयए वा एवं मणूसे वि सेसा नेरइयाई एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नियमा अड्ड कम्पपगडीओ वेदेति जाव वेमाणिया, जीवा जं मंते वेदणि कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ वेदेति गोयमा सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठविहवेदगा य चउव्विवेदगाय अहवा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेदगे य अहवा अट्ठविहवेदमा य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेदगा य एवं मणूसा वि माणियव्या ॥३०१।-300 ● पंचवीसहमं पयं समत्तं ● छच्चीसइमं - कम्मवेयबंधपयं (५४८) कति णं मंते कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ गोयमा अष्ट्ठ कम्पपगडीओ पत्रत्ताओ तं जहानाणावरणिचं जाव अंतराइयं एवं नेरइयाणं जाव वेपाणियाणं जीवे णं भंते नाणावरणिजं कम्पं वेदेमाणे कति कम्पपगडीओ बंधति गोयमा सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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