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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पनवणा • 91-1- 19 अणेगविहा पन्नत्ता तं जहा-इंगाले जाला मुम्मुरे अघी अलाए सुद्धागणी उक्का विजू असणी निग्धाए संधरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिणिस्सिएजे यावष्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्तातं जहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य तस्यणजेते अपनत्तगाते णं असंपत्ता तत्थ णं जेते पञ्जत्तगा एएसि णं वण्णादेसेणंजाव नियमा असंखेज्जा सेत्तं बादरतेउकाइया सेत्तं तेउकाइया।१७-17 (३२) से किंतं वाउक्काइया, वाउक्काइया दुविहा पनत्ता तं जहा-सुहुपवाउक्काइयाय बादरवाउक्काइया य, से किं तं सुहुमवाउक्काइया, सुहमवाउकाइया दुविहा पत्रता तं जहापजत्तगसुहुमवाउक्काइया य अपञ्जत्तगसुहुमवाउककाइया य से तं सुहमघाउकाइया, से किं तं बादरवाउकाइया बादरवाउक्काइया अणेगविहा पन्नता तं जहा-पाईणवाए पड़ीणवाए दाहिणवाए उदीणवाए अहोयाए तिरियवाए विदिसीवाए चाउदमामे चाउकलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घणवाए तनुवाए सुद्धवाए जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता तं जहा-पजत्तगा य अपजतमा य तत्य णं जेते अपनत्तगा तेणं असंपत्ता तस्थणजेते पजत्तगाएतेसिणं वण्णादेसेणंजाव नियमा असंखेनासेतं बादावाउकाइया से तंवाउकाइया।१८1-18 (३३) से किं तं वणस्सइकाइया, वणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता तं जहा-सुहुमवणस्सइकाइयाय बादरवणस्सइकाइयाय।१९।-19 (३४) से किं तं सुहमवणस्सइकाइया, सुहमवणस्सइकाइया दुविहा पत्रत्ता तं जहा पज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य अपजत्तसुहुमवणस्सइकाइयाय, सेत्तंसुहमवणस्सइकाइया|२०|-20 (३५) से किं तं बादरवणस्सइकाइया, बादरवणस्सइकाइया दुविहा पन्नता तं जहापत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया य साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया य।२१1-21 (३६) से किं तं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया दुवालसविहा पन्नत्ता[तंजहा ।२२१-22 (३७) रुक्खा गुच्छा गुम्मा लता य वल्ली य पव्वगा चेद तण वलय हरिय ओसहि जलरुह कुहणाय वोधव्वा ॥१४॥-1 (३८) से किंतंरुक्खा, रुक्खा दुविहा पत्रत्ता तंजहा- एगडिया या बहुबीयगा य से किं तं एगडिया एगडिया अणेगविहा पन्नत्ता [तं जहा १२३-१1-23-1 (३९) निबंब जंबु कोसंब साल अंकोल्ल पीलु सेलू य सल्लइ मोयइ मालुय बउल पलासे करंजे य 11941-12 (४०) पुत्तंजीवयरिटेबिभेलए हरडए य मल्लाए उंबेभरिया खीरिणि बोधव्वे धायइ पियाले ||१६||-13 (१) पूई य निंबकरए सेपहा तह सीसवा यअसने य पुण्णाग नागरुखे सीयण्णि तहा असोगेय |१७||-14 (४२) जे यावण्णे तहप्पगारा, एतेसिणं मूला वि असंखेजजीविया कंदा विखंधा वितया वि साला वि पवाला विपत्ता पत्तेयजीविया पुष्फा अणेगजीविया फला एगठिया से तं एगठ्ठिया से किं तं बहुवीयगा बहुबीयगा अणेगविहा पत्रत्ता तंजहा-२३-११-22-1 (४३) अस्थिय तिंदु कविढे अंबाडग माउर्लिंग यिल्ले य आमलग फणस दाडिमआसोत्ये उंबर वडे य ||१८|15 For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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