SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्नयणा - २२/-1-1५३२ अवंधए वा मिच्छादसणसल्लविरएणं भंते नेरइए कति कम्मपगडीओ बंधति गोयमा सत्तविहबंधए वाअट्ठविहबंधए वाजाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिए मणसे जहा जीवे वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिए जहा नेरइए, मिच्छादसणसल्लविरया णं मंते जीवा कति कम्मपगडीओ बंधति गोयमा ते चेव सत्तावीसं भंगा माणियव्या मिच्छादंसणसल्लविरया णं मंते नेरइया कति कम्मपगडीओ वंधति गोयमा सब्बे वि ताव होज सत्तविहबंधगा अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगे य अहवा सत्तविहबंधगा यअद्वविहबंधगा य एवंजाव वेमाणियानवरं-मणूसाणं जहा जीवाणं ।२८७।-268 (५३३) पाणाइवायविरयस्स णं मंते जीवस्स किं आरंभिया किरिया कति गोयमा पाणाइवायविरयस्सजीवस्स आरंमिया किरिया सिय कज्जइसिय नो कनइ पाणाइवायविरयस्सणं मंते जीवस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ गोयमा नो इणढे सपढ़े पाणाइवायविरयस्सणं मंते जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ गोयमा सिय कनइ सिय नो कज्जइ पाणाइवायविरयस्स णं मंते जीवस्स अप्पचक्खाणवत्तिया किरिया कज्जत्ति गोयमा नो इणडे समढे मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा गोयमा नो इणटेसमटे एवं पाणाइवायविरयस्स मणूसस्स विएवंजाव मायामोसविरयस्सीवस्स मणूसस्स य मिच्छांदसणसल्लविरयस्स णं मंते जीवस्स किं आरंमिया किरिया कति जाव मिच्छाईसणवत्तिया किरिया कति गोयमा मिच्छादसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कद्धति सिय नो कजति एवं जाव अप्पच्चकखाणकिरिया मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कजति मिच्छादसणसल्ल विरयस्स णं पुच्छा गोयमा आरंमिया वि किरिया कजति जाव अपञ्चक्खाणकिरियादि कज्जति मिच्छादसणवत्तिया किरियानो कजति एवंजावथणियकुमारस्स मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते पंचेदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा गोयमा आरंभिया किरिया कजइ जाव मायावत्तिया किरिया कज्जइ अपचक्खाणकिरिया सिय कज्जइ सिय नो कजइ मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कजति पणूसस्स जहा जीवस्स वाणमंतर-जोइसिय वेमाणियाणं जहा नेरइयस्स एतासि णं मंते आरंभियाणं जाब मिच्छादसणवत्तियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला या विसेसाहिया वा गोयमा सव्वत्थोवाओ मिच्छादंसणवत्तियाओ किरियाओ अप्पच्चक्खाणकिरियाओ विसेसाहियाओ परिगहियाओ दिसेसाहियाओ आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ मायावत्तियाओविसेसाहियाओ।२८८1-287 बावीसइमं पर्व समत्तं. तेवीसइमं कम्मपगडीयं - पट मो-उस ओ :(५३) कति पगड़ी कह वंधति कतिहि व ठाणेहिं बंघए जीवो कति वेदेइ य पयहीअनुपावो कतिविहो कस्स ॥२१७||-1 (५३५) कति णं मंते कम्पपगडीओ पन्नताओ गोयमाअट्टकम्मपगडीओ पन्नत्ताओतंजहानाणावरणिचं दंसणावरणिज्जं बेदणिज्जं मोहणिजं आउयं नामं गोयं अंतराइयं नेरइयाणं भंते कति कम्पपगडीओ पन्नत्ताओगोयमाएवं चेवएवं जाय वेमाणियाणं।२८९।-288 (५३६) कहणं मंते जीवे अट्ठ कम्पपगडीओ बंधइ गोयमा नाणावरणिजस्स कम्पस्स उदएणं दंसणावरणिज्जं कम्मं नियच्छति दंसणावरणिज्जस्स कम्मस्सउदएणं दंसणमोहणिझं कामं नियच्छति दंसणमोहणिजस्स कम्पस्स उदएणं मिच्छत्तं नियच्छति मिच्छत्तेणं उदिण्णेणं गोयमा एवं For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy