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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ कनाणा • 14/114nt. गोयमा जहणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखेझं कालं-असंखेजाओउस्सपिणि-ओसप्पिणीओ कालो, खेत्तओ अंगुल्स असंखेजइमागं नोसुहम-नोबादरे णं मंते पुच्छा गोयमा सादीए अपञ्जवसिए।२५०।-249 - ए गूप वी समंदा :(११) सप्णी गंमतेसण्णी तिकालओकेवविरं होइगोयमाजहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तंसातिरेगं, असण्णी णं पुच्छा गोयमा जहणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं रणफइकालो नोसण्णी-नअसण्णीणपुच्छा गोयमा सादीए अपञ्जवसिए।२५1-260 - वी सइयं दार:(४९३) भवसिद्धिएणं पुछा गोयमाअणादीसपज्जवसिए, अभवसिद्धिए णं पुच्छा गोयमा अणादीएअपञ्जवसिए, नोमवसिद्धिय-नोअभवसिद्धिएणपुच्छासादीएअपजवसिए।२५२1-251 - एग बी सइदा :(४९३) धमत्यिकाएणपुच्छा गोयमा सव्वद्ध एवंजाव अद्धासमए।२५३/-252 -: बा वी सइदा :(४९४) चरिमे णं मंते पुच्छा गोयमा अणादीए सपञ्जवसिए, अचरिमे णं पुच्छा गोयमा अचरिमे दुविहे पत्रत्तेतंजहा-अणादीवाअपजवसिएसादीएवा अपञ्जवसिए।२५४1-253 • अवारसमे पये १-२२ दाराणि समत्तानि अवरसमं पर्व समतं. एगूणवीसइमं सम्मत्तपयं (१२५) जीवा गंमते किं सम्मदिट्टी मिच्छद्दिडी सम्मामिच्छद्दिवी गोयमा जीवा सम्मदिट्टी वि मिच्छद्दिट्टी वि सम्मामिच्छदिठी वि एवं नेरइया वि असुरकुमारा वि एवं चेव जाद थणियकुमारा, पुदविक्काइयाणं पुच्छा गोयमा पुदविक्काइया नो सम्पद्दिट्टी मिच्छद्दिद्वी नो सम्मामिच्छद्दिही एवं जाव वणप्फइकाइया, बेइंदियाणं पुच्छा गोयमा बेइंदिया सम्पदिट्ठी वि मिच्छट्ठिी वि नो सम्मामिच्छद्दिट्टी एवं जाव चउरिदिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिय-मणुस्सा वाणमंतर-जोतिसियवेपाणिया य सम्मदिट्टी वि मिच्छद्दिट्टी वि सम्मामिच्छद्दिवी वि, सिद्धाणं पुच्छा गोयमा सिद्धा णं सम्मद्दिडी नो मिच्छद्दिट्ठी नोसम्मामिच्छद्दिवी ।२५५8-254 .एगणवीसइमपर्य समत. वीसइमं अंतकिरियापयं (४९६) नेरइय अंतकिरिया अनंतरं एगसमय उव्वष्टा तित्यगर चकिक बल वासदेव मंडलिय रयणाय ॥१३॥-1 (१९७) जीवेणं मंते अंतकिरियं करेजा गोयमा अत्येगइए करेजा अत्यगइए नो करेजा एवं नेरइए जाद देमाणिए, नेरइएणं भंते नेरइएसु अंतकिरियं करेजा गोयमा नो इण समढे, नेरइएणं भंते असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेजा गोयमा नो इणढे समढे, एवंजाव वेपाणिएसु नवरं-पणूसेसु अंतकिरियं करेजति पुच्छा गोयमा अत्येगइए करेजा अत्येगइए नो करेजा, एवं असुरकुमारे जाद वेमामिएएवमेते चउवीसं चउवीसदंडगा।२५६4-255 (14) नेरइया णं भंते कि अनंतरागता अंतकिरियं करेंति परंपरागया अंतकिरियं करेति गोयमा अनंतरागपा वि अंतकिरियं करेति परंपरागता वि अंतकिरियं करेति एवं रयणप्पमा For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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