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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पप-१५ ||१९९||-1 परिणामे यलुक्खबंधणपरिणामेय।१८७-१-187-1 (१०) सपणियाए बंधो ण होति समलुक्खयाए विण होती - येमायणिद्ध-लुक्खत्तणेणं बंधी उ खंधाणं (११) निद्धस्स निद्रेण दुपाहिएणं लुक्खस्स लुक्खेण दुपाहिएणं निद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंयोजहण्णवसो विसमो समोवा ॥२००।-2 (१२) गतिपरिणामे णं भंते कतिविहे पन्नते गोयमा दुविहे० फुसमाणगतिपरिणामे य अफुसमाणगतिपरिणामे य अहवा दीहगइपरिणापेय हस्सगइपरिणामे य संठाणपरिणामे णं पुछा गोयमापंचविहे० परिमंडलसंठाणपरिणामेजाव आयसंठाणपरिणामे मेयपरिणामेणं पुच्छा गोयपा पंचविहे णं पुच्छा खंडाभेदपरिणामे जाव उककरियाभेदपरिणामे वण्णपरिणामे णं पृच्छा गोयमा पंचविहे० कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे, गंधपरिणामेणं० गोयमा दुविहे सुमिगंधपरिणामेय दुब्मिगंधपरिणामे य, रसपरिणामेणं पुच्छा गोयमा पंचविहे० तित्तरसपरिणामे जाव महुररसपरिणामे, फासपरिणामेणं पुच्छा गोयमा अट्टविहे० कक्खडफासपरिणामे य जाव लुक्खफासपरिणामे य अगरुयलयपरिणामे णं पच्छा गोयपा एगागारे पत्रत्ते, सद्दपरिणामे णं पुच्छा गोयमा दुविहे पनत्ते तं जहा-सुब्मिसद्दपरिणामे य दुब्मिसद्दपरिणामे य से तं अजीवपरिणामे १८५1-185 .तेरसपंपयंसपतं. चोद्दसमं कसायपयं (१३) कति णं मंते कसाया पत्रत्ता गोयमा चत्तारि कसाया पन्नत्ता तं जहा-कोहकसाए मानकसाए मायाकसाए लोभकसाए, नेरइयाणं मंते कति कसाया पत्रत्ता गोयमा चत्तारि कसाया पात्तातं जहा-कोहकसाएजावलोमकसाए एवंजार वेमाणियाणं।१८६/-188 (१४) कतिपतिहिए णं मंते कोहे पत्रत्ते गोयमा घउपतिहिए कोहे पत्रत्ते तं जहाआयपतिट्ठिए परपतिहिएतदुभवपतिहिए अप्पतिट्ठिए एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं दंडओ, एवं माणेणं दंडओ मायाए दंडओ लोभेणं दंडओ कतिहिणं भंते ठाणेविहे कोहुपत्ती भवति मोयमा चउहि ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवतितंजहा-खेत्तं पडुच्च वत्युंपडुच्छ सरीरंपडुध उवहिं पडुच्च एवं नेरइयाणं जाववेमाणियाणं एवं माणेण विमायाएविलोभेणविएवं एते विचत्तारिदंडगा।१८७1-187 (१५) कतिविहे णं मंते कोहे पन्नत्ते गोयमा चउबिहे कोहे पन्नत्ते तं जहा-अनंताणुबंधी कोहे अप्पद्यखाणेकोहे पञ्चक्खाणावरणेकोहे संजलणेकोहे एवं नेरइयाणं जाव देपाणियाणं एवं माणेणंमायाए लोभेणं एए विचत्तारिदंडगा।१८८-188 (१६) कतिविहे गं भंते कोहे० गोयमा चउविहेकोहे० आभोगणिवत्तिए अणापोगणिवत्तिए उवसंते अनुवसंते एवं नेरझ्याणं जाव वैमाणियाणं एवं माणेण वि जाव चत्तारि दंडगा १८९-189 (४१७) जीवाणं पंते कतिर्हि ठाणेहि अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु गोयमा चउहि ठाणेहिं० चिर्णिसुतं जहा-कोहेणंजाव लोमेणं एवं नेरइयाणं जाव चेमाणियाणं जीवा णं भंते कतिहिं ठाणेहि अट्टकम्मपगडीओ चिणति गोयमा चउहि ठाणेहिं तं जहा-कोहेणं जाव लोभेणं एवं नेरइया जाव देमाणिया, जीवाणं मंते कतिहिं ठाणेहिं अहकप्मपगडीओचिणिसति गोयमा चउहि ठाणेहिं० तं For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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