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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||४||-3 जीवाजीवाभिगम - १/-२७ (२७) जह वा तिलप्पडिया बहुएहिं तिलेहि संहितासंती पत्तेयसरीराणंतह होतिसरीरसंघाया (२८) सेत्तं पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया।२१।-20 (२१) से किं तं साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया अनेगविहा पन्नता तं जहा-आलुए मूलए सिंगबेरे हिरिलि सिरिलि सिस्सिरिलि किछिया छिरिया छीरविरालिया कण्हकंदे वजकंदे सूरणकंदे खेलूडे भद्दमोत्था पिंडहलिद्द लोही नीह थीहू अस्सकण्णी सीहकण्णी सीउंदी मुसंडी जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता तं जहा-पजतगा य अपजत्तगा व तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता तत्य णं जेते पञ्जत्तगा तेसिं बण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सागप्तो विहाणाई संखेन्जाइ जोणिप्पमुहसयसहस्साई पञ्जत्तगणिस्साए अपञ्जत्तगा चकमंति-जन्य एगो तत्थ सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता तेसिणं भंते जीवाणं कति सरीरमा पत्रत्ता गोयमा तओ सरीरमा पन्नत्ता तं जहा ओरालिए तेयए कम्मए तहेव जहा बायरपुढविकाइयाणं नवरं-सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेचइभागं उक्कोसेणं सातिरेगंजोयणसहस्सं सरीरंगा अणित्यंसंठिया ठिती जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दसवाससहस्साईजावटुगइया तिआगइया अपरित्ता अनंता पत्रत्ता सेत्तंबायरवणस्सइकाइया सत्तं वणस्सइकाइया सेत्तंथावरा ।२२।-21 (३०) से किं तं तसा तसा तिविहा पन्नत्ता तं जहा-तेउक्काइया वाउइक्काइया ओराला तसा पाणा।२३1-22 (३१) से किं तं तेउक्काइया तेइउक्काइया दुविहा पनत्ता तं जहा सुहुमतेउक्काइया य वावरतेउक्काइयाय।२४।-23 (३२) से किं तं सुहुमतेउकाइया सुहुमतेउक्काइया जहा सुहुमपुढविक्काइया नवरं - सरीरमा सूइकलावसंठिया एगगइया दुआगइया परिता असंखेना पन्नता सेसं तं चेव सेतं सुहुमतेउक्काइया ।२५1-24 (३३) से कि तंबादरतेउकाइयाबादरतेउककाइया अनेगविहा पन्नत्तातंजहा इंगाले जाव तत्य निवमा असंखेजा तेसी णं भंते जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता गोयपा तओ सरीरमा पन्नता तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए सेसं तं चेव सरीरंगा सूइकलावसंठिया तिण्णि लेस्सा ठिती जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाइं तिरियमणुस्सेहिंतो उयवाओ सेसं तं चेव जाव एमतिया दुआगतिया परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता सेत्तं बादरतेउक्काइया सेत्तं तेउक्काइया।२६1-25 (३४) से किं तं वाउकाइया वाउकाइया दुविहा पन्नत्ता तंजहा-सुहम-वाउकाइया व बापरवाउक्काइया य सुहमबाउकाइया जहा तेउक्काइवा नवरं-सरीरगा पड़ागसंठिया एगगतिया दुआगतिया परित्ता असंखिजासेत्तं सुहमवाउकाइया, से किं तं बादरवाउकाइया बादर -बाउक्काइया अनेगविहा पत्रत्ता तंजहा-पाईणवाते पड़ीणवाते जाव सुद्ध बाते जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पत्रत्ता तं जहा पजत्तगा व अपञ्जत्तगा य तत्य णं जे ते अपञ्जत्तगा ते णं असंपत्ता तत्थणं जे ते पजतगा एतिसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई संखेनाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साई पनत्तगणिस्साए अपनत्तमा चकमंति-जत्य एगो तत्थ नियमा असंखेचा तेसि णं भंते जीवाणं कति सरीरमा पन्नता गोयमा चत्वारि सरीरगा पन्नता तं जहा-ओरालिए वेठब्यिए तेथए कम्पए सरीरगा पडागसंटिया चत्तारि समुग्धाया For Private And Personal Use Only
SR No.009740
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages162
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size3 MB
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