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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ पडिवत्ति - सव्य०, अट्ठमी पडिवत्ति केवचिरं होति गोयमा सादीयस्स अपजवसियरस नत्थि अंतरं अप्पाबहुयं सव्वत्योवा मगुस्सा, नेरइया असंखेजगुणा देवा असंखेज्जगुणा पंचेंद्रियतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा चउरिदिया विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेइंदिया विसेसाहिया सिद्धा अनंतगुणा एगिंदिया अनंतगुणा २७०1-269 (३९६) अहवा नवविधा सव्यजीवा पत्रत्ता तं जहा पद्धमसमयनेरइया अपढम समयनेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपदमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपदमसमयमणूसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा सिद्धा व, पढमसमयनेरइया णं भंते पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति गोयमा एक्कं समयं अपढमसमयनेरइए णं भंते अपढमसमयनेरइएत्ति काल- ओ केवचिरं होति गोयमा जहण्णेणं दस वाससहस्साइं समयूणाई उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमा समपूणाई पढमसमयिरिक्खजोणिए गं भंते पढसममयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति गोपमा एक्कं समयं अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते अपढमसमपतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति गोयमा जहणणेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो, पढमसमयमणूसे णं भंते पढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति गोवमा एक्कं समयं अपढमसमयमणूसे णं भंते अपढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति गोयमा जहष्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समपूर्ण उक्कोसेणं तिष्णि पलिओचमाई पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई देवे जहा नेरइए सिद्धे णं भंते सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति गोयमा सादीए अपञ्जवसिते पढमसमयनेरइयस्स णं भंते अंतर कालओ केवचिरं होति गोयमा जहणणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमहियाई उक्कोसेणं वणस्सतिकालो अपढमसमयनेरइयस्स णं भंते अंतरं कालओ केवचिरं होति गोवमा जहणणं अंतोमुहुत्तं उक्को सेणं वणस्सतिकालो पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते अंतरं कालओ केवचिरं होति गोयमा जहण्णेणं दो खुड्डागाई भवग्गहणाई समयूणाई उक्को सेणं वणस्सतिकालो अपढमसमयतिरिक्खजोणियत्स णं भंते अंतरं कालओ केवचिरं होति गोयमा जहण्णेणं खुडागं भवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं पढमसमयम सस्स जहा पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स अपढमसमयमणूसस्स णं भंते अंतरं कालओ केवचिरं होति गोयमा जहन्ने खुड्डागं भवाहणं समचाहियं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो पढमसमयमदेवस्स जहा पढमसमयनेरइयस्स अपढमसमयदेवस्स जहा अपढमसमयनेरइयस्स, सिद्धस्स णं भंते अंतरं कालओ केवचिरं होति गोयमा सादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं एएसि णं भंते पढमसमयनेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं पढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया या तुल्ला वा विसेसाहिया वा गोयमा सव्वथोवा पढमसमयमणूसा, पढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा एएसि णं भंते अपढमसमयनेरइयाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयमसाणं अपढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया या तुल्ला वा विसेसाहिया वा गोयमा सव्वत्योवा अपढमसमयमणूसा, अपढमसमयनेरइया असंखेजगुणा अपढमसमयदेवा असंखेजगुणा अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा For Private And Personal Use Only
SR No.009740
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages162
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size3 MB
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