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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुत्तं-७८ सम्मं विणएणं खामित्तए ति कहजामेव दिप्ति पाउटभूए तामेव दिसिं पडिगए तए णं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए {फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्पिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपासकिंसुय सुवमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलगार-नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे] तेयसा जलंत हट्टत? (चित्तमाणंदिए पीइसणे परससो- मणस्सिए हरिसवस-विसप्पपाण] हियए जहेब कूणिए तहेव निगच्छइ-अंतेउर-परिवालसद्धिं संपरिबुडे पंचविहेणं अभिगमेणं [अभिगच्छइ तंजहा-सचित्ताण दवाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दब्वाणं अविओसरणयाए एगसाडियं उत्तराप्तंगकरणेणं चखफासे अंजलिपग्गहेणं पणसो एगत्तीभावकरणेणं केसि कुमारसमणं तिक्खुत्तो आचाहिणं-पयाहिणं करेइ करेत्ता] वंदइ नमसइ एयमढें भुन्नो-भुनो सम्मं विगएणं खामेइ ।७७1-77 (७८) तए णं केसी कुमार-सपणे पएसिस्सरण्णो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महछपरिसाए चाउजामं धम्म परिकहेइ तएणं से पएसी राया धम्म सोच्चा निसम्म उठाए उदृति केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ जेणेय सेयविया नगरी तेगेव पहारेत्थ गमणाए तए ण केसी कुमार-समणे पएसि राचं एवं बयासी-मा णं तुसं पएसी पुचि रपणिजे भवित्ता पच्छा अरमणिजे भविनासिजहा-से बनसंडेइ वा नट्टसालाइया इखुवाडेइ बाखलवाडेइ वा कहंणंभंते वनसंडे पुद्धि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरपणिजे भवति पएसी-जया णं वनसंडे पत्तिए पुफिए फलिए हरियगरेरित्रमाणे सिरीए अईव-अईव उपसोभेमाणे चिदुइ तपाणं वनसंडे रमाणजे भवति जया णं वनसंडे नो पत्तिए नो पुफिए नो फलिए नो हरियगरेरिञ्जमाणे नो सिरीए अईव-अईब उवसोभेमाणे चिट्ठइ तयाणं जुण्णे झडे परिसडिय-पंडुपत्ते सुकरुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ तयाणं वणसंडे नो रमणिज्जे भवति जया णं नट्टसाला गिन्नइ वाइजइ नच्चिाइ अभिणिजइ हसिज्झइ रमिजइ तया णं नसाला रमणिजाभवइजयाणं नट्टसालानोगिज्जइजाबनोरमिज्जइ तयाणनट्टसाला अरमणिना भवइ जया णं इक्खुवाडे छिजइ भिजइ लुञ्जइ खन्नइ पिज्जइ दिज्जइ तया णं इक्खुवाडे रमणिन्जे भवइ जया णं इक्खुवाड़े नो छिन्नइ [नो भिजइ नो लुज्जइ नो खज्जइ नो पिजइ नो दिजइ] तवा णं इक्खुवाडे अरमणिज्जे भवइ जया णं खलवाडे उच्छुडभइ उड्डुइञइ मलइज्जइ पुणिज्जइ खजइ पिज्जइ दिजइ तयाणं खलबाडे रमणिज्ने भवति जयाणे खलवाडे नो उच्छुडभइनो उडुइजइ नो मलइजइनो पुणिन्नइ नो खज्जइ नो पिञ्जइ नो दिजइ तया णं खलवाडे] अरमणिजे भवति से तेणद्वेणं पएसी एवं बुच्चइ-माणं तुम पएसी पुचि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिजे भविजासि जहा-से वनसंडेइ वा [नट्टसालाइ वा इक्खुवाडेइ वा] खलबाडेइ वा तए णं पएसी केसिं कुमार-समणं एवं वयासी-नो खलु भंते अहं पुचि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिजे भविस्यामि जहा से वनसंडेइ वा [नट्टसालाइ वा इक्खुवाडे वा] खलवाडइ वा-अहं णं सेयबियापामोक्खाई सत्तगामसहस्साइं चत्तारि भागे करिस्सापि-एगं भागं वत्तवाहणस्स दलइस्सामि एग भाग कोट्ठागारे छुभिस्सामि एगं भागं अंतेउरस्स दलइस्सामि एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करितामि तत्थ णं यहूहिं पुरिसेहिं दिण्णभइ-भत्त-वेयणेहिं बिउलं असणं पाणं साइमं खाइस उवरखडावेत्ता यहूर्ण समण-माहण-भिक्खुयाणं पंथिय-पडियाणं परिभाएमाणे दहहिं सीलव्यय-गुणव्यय-वेरमण-पच्चखाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सामि त्ति कटु जापेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए।७८1-78 For Private And Personal Use Only
SR No.009739
Book TitleAgam 13 Raipaseniyam Uvangsutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 13, & agam_rajprashniya
File Size2 MB
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