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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदवाइयं ३० - कारवेत्ता य जेणेव बलवाउए तेणेवउ- वागच्छइ उदागच्छित्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ तणं सेबल वाउएकोणिस्स रण्णो भिंभसार पुत्तस्स आभिसेकूकं हत्थिरयणं पडिकप्पयं पासइ हय-गय-[रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिण सेणं सण्णाहियं पासइ सुभद्दापमुहाण य देवीगं डिजाणाई उवट्ठवियाई पासइ चंपं नयरिं सम्भितर बाहिरियं जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ पासित्ता तुट्ठ- चित्तमाणंदिए पीड़मणे (परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण] चिए जेणेव कूणिए राया भिसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ स्वागच्छित्ता करयल [ परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ बेद्धावेत्ता एवं वचासी कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं अभिसेक्के हत्थिरयणे हय-गय-रह-पवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवङ्काणसालाए पाडियक्क पाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई उबट्टावियाई चंपानयरी सम्भितर-बाहिरिया आसित्त-सम्मजिओबलित्ता जाव गंधवट्टिभूया कया तं निजंतु णं देवाणुप्पिया समणं भगवं महावीरं अभिवंदया |३०|-30 For Private And Personal Use Only (३१) तए णं से कूणिए राया घिसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमहं सोचा निसम्मं हट्ठतु -[चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसष्पभाग] - हियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ अनुपविसित्ता अनेगवायाम-जोग-वग्गणवामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपाग - सहस्सपारोहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिहिं दप्पणिहिं मणिहिं विहणिजेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिजेहिं अमिगेहिं अभिगिए समाणे तेल्लचम्मंसि पडिपत्र-पाणि-पाय- सुउमाल- कोमल-तलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसले हिं मेहावीहिं निउणसिप्पोबगएहिं अभिगण-परिमद्दणुव्वलण करण-गुणणिम्माएहिं अट्ठसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए- चउच्चिहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगय-खेय-परिस्रमे अट्टण सालाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुपविसइ अनुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे विचित्त-मणि-रवण-कुट्टिमतले रमणिजे ण्हाणमंडवंसि नाणामणि- रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसणे सुहोदएहिं गंधोदएहिंपुष्पोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो- पुणो कल्लाणग-पवर-मज्झणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमञ्जणावसाणे एम्हल- सुकुमाल-गंध- कासाई - लूहियंगे सरस- सुरहि-गोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहय- सुमहग्ध-दूसरयण- सुसंवुए सुइमाला वण्णग-दिलेवणे य आविद्धमणिसुवणे कपियहारद्धहार-तिसरय- पालंब - पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्ध-गेवेजग अंगुलिज्जग-ललियंगय-ललियकयाभरणे वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहिव- रूवसस्सिरीए मुद्दियपिंगलंगुलीए कुंडलउज्जीवियाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्यय-सुकय-रइयवच्छे पालंब-पलंवमाणपड-सुकथउत्तरिजे नानामणिकणग-रयण-विमल-महरिह-निउणोवियमिसिमि-संत-विरइव-सुसिलिङ- विसिद्ध - लट्ठ - आविद्ध-वीरवलए किं बहुणा कप्परुक्खए चेव अलंकि- यविभूसिए नरवई सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चरचामरवालवीइयंगे - मंगल-जयसद्द - कयालए मज्जणधराओ पडिनिकूखमइ पडिनिक्खनिता अणेगगणनायग-दंडनायग- राईसर-तलवर-माइंदिय-कोडुंबिय इभ-सेट्ठि सेणावइ- सत्यवाह - दूय- संधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहणिग्गए इव गहगणदिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्च पिअदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उबट्टाणसाला जेणेव अभिसेक के हत्थरयणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई नरवई दुरूढे
SR No.009738
Book TitleAgam 12 Uvavayaim Uvangsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages50
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 12, & agam_aupapatik
File Size1 MB
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