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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूतं-२७ पम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तमवेउब्विणो विविहवस्थगंधमल्लधारी महिड्ढिया जाय पशुवासंति।२६।-20 (२७) तए णं चंपाए नयरीए सिंधाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जपसदेइ वा जणवूहेइ वा जणदोलेइ वा जणकलकलेइ वा जणुप्मीइ वा जणु- कलियाइ वा जणसण्णिवाएइ वा बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवंभासइ एवं पनवेइ एवं पख्वेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्यगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे पुच्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुनभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइतं महप्फलं खलु भो देवाणुप्पिया तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमसण-पडिपुच्छण प वासणयाए एगस्स विआरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पञ्जुवासामो एयं णे पेच्चभवे इहमये य हियाए सुहाए खमाए निस्सयसाए आणुगामियताए भविस्सइत्ति कड बहवे उग्गा उग्गपुत्ता मोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं-राइण्णा खतिया माहणा भडा जोहा पसत्यारो मलई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अन्ने य बहवे राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुंबिय इन्भ-सेट्ठिसेणावइ-सस्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूषणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्मरणयत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाई सुणेस्सामो सुवाइं निस्संकियाइं करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भविताअगाराओ अणमारियं पव्वइस्सामो अप्पेगइया पंचाणुब्बइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवञ्जिस्सामो अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया जीयमेयंति कट्ट हाया कयबत्तिकम्मा कय कोउय-मंगलपायच्छित्ता सिरसा कंठे पालकडा आविद्धमणि-सवण्णा कप्पिय-हारद्धहार-तिसर-पालब-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरत्थपरिहिया चंदणोलितगायसरीरा अपेगइया हयगवा अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगवा अप्पेगइया सिबियागया अप्पेगइया संदमाणि- यागया अप्पेगइया पायविहार-चारेणं पुरिसवागुरा-परिस्खित्ता महया उक्किट्टसीहणाय-बोल-कलकत्लरवेणं परखुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणा चंपाए नवरीए मझमझेणं निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता जेणेव पुनभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थगराइसेसे पासंति पासिता जाणवाहणाइंठवेंति ठवेत्ता जाणवाहणेहितो पच्चोरुहंति पचोरुहिता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति उवगाच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमसंति वंदित्ता नंसित्ता नचासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणा नपंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडापनवासंति ।२७1-27 (२८) तए णं से पवित्ति-वाउए इमीसे कहाए लद्धडे समाणे हट्टतुट्ठ-[चित्तमाणदिए पीइपणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण] हियए हाए [कयबलिकम्मे कय कोउय-मंगल पायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहाधाभरणालंकियसरीरे सचाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता चंपं नयरिं मझमझेणं जेणेय बाहिरिया [उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए For Private And Personal Use Only
SR No.009738
Book TitleAgam 12 Uvavayaim Uvangsutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages50
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 12, & agam_aupapatik
File Size1 MB
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