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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयनं-2 ५७ महासतया समणोवासया किं णं तुब्धं देवाणुप्पिया धम्मेण वा पुत्रेण वा सग्गेण वा मोक्त्रेण चा जं गं तुमं मए सद्धि ओरालाई माणुस्साई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि तए णं से महासतए समोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमठ्ठे नो आढाइ नो परियाणाई अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं ] दीनं पित पि एवं व्यासी तए गं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहाबइणीए दोघं पित पि एवं वुत्ते समाणे आसुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्क एमिसिमिसीयमामो ओहिं पउंजइ परंजित्ता ओहिणा आभोएइ आभोएत्ता रेवत्तिं गाहावइणिं एवं वयासी - भो रेवती अप्पत्थियपत्थिए दुरंतपंत-लक्खणे जाव नरए चुरासीतिवास- सहस्सडिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए ] उववज्जिहिंसि नो खलु कप्पइ गोयमा समणोवासगस्स अपच्छिमं [ मारणंतियसंलेहणा झूसणा-झूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सम्पूएहिं अणिट्वेहिं अकंतेहिं अप्पिएहिं अमणुष्णेर्हि अमणामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए तं गच्छ णं देवाणुष्पिया तुमं महासतयं समणोवासयं एवं वपाहिनो खलु देवाणुपिया कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम [ मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स ] भत्तपाण -पडियाक्खियस्स परो संतेहि जाव वागरणेहिं वागरित्तए तुमे य णं देवाणुप्पिया रेवती गाहावइणी संतेहि तच्चेहिं तहिएहिं समूएहिं अणिद्वेहिं अकंतेहि अप्पिएहिं अमणुण्णेहिं अमणामेहिं वागरणेहिं बागरिया तं णं तुमं एयस्स ठाणस्स आलोएहि [पडिक्कमहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि । अहारिहं पायच्छितं तवोकम्मं पडिवजाहि तए णं से भगवं गोवमे सममस्स भगवओ महावीरस्स तए ति एयमङ्कं विणएणं पडिसुणेइ परिसुणेत्ता तओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयां मज्झमज्झेणं अनुष्पविसइ अनुष्पविसिता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासतए समणीवासए तेणेव उवागच्छइ तए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयमं एखमाणं पासइ पासित्ता हट्ठ-[तुट्ठचित्तमानंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण] हियए भगवं गोयमं वंदइ नमसइ तए णं से भगवं गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं वयासी एवं खलु देवाणुम्पिया समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ भासइ पनवेइ परूवेइ-नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया समणोवासगस्स अपच्छिम [मारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण- पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं जाव वागरहिं] बागरित्तएतुमेणं देवाणुप्पिया रेवती गाहाबइणी सेतहिं [तच्चेहिं जाव वागरणेहिं] वागरिया तं णं तुमं देवाप्पिया एयस्स ठाणस्स आलोएहिं [पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अन्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं] पडिवज्जाहि तए णं से महासत्तए समणोवासए भगवओ गोयमस्स तह त्ति एयमहं दिणएणं पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जइ तए णं से भगवं गोयमे महासतगस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मच्झमज्झेणं निगच्छइ निष्यच्छित्ता जे व समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगदं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता संजपेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ । ५३1-53 (५३) तए णं से महासतए समणोवासए बहूहिं सील-व्वय -[ गुण- येरमण-पचक्खाणपोसहोबवासेहिं अप्पाणं] भावेत्ता बीसं वासाई समणोवासगपरियायं पाउणित्ता एक्कारस य For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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