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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवासगदसाओ ६/४१ विहरतए तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जेवपुत्तं मित्त-नाइ-निगय-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छर आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ पमजित्ता उच्चार- पासवणभूमि पडिलेहेइ पडिलेहेत्ता दब्भसंधारयं संथरेइ संधरेत्ता दव्भसंधारयं दुरुहइ दुरहित्ता पोसहसालाए पोसहिए वंमयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमाला - वण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्यमुसले एगे अवीए दरभसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं] धम्मपत्रत्तिं उवसंपञ्जित्ता णं विहरइ [तए णं से कुंडकोलि समणोवासए पढमं उवास - पडिमं उवसंपचित्ता णं विहरइ तए णं से कुंडकोलिए समणोचासए पढमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहात्तत्रं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए दोघं उवासगपडिमं एवं तच्चं जाव एक्किारसमं ज्वासगपडिमं अहासुतं जाव आराहेइ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए इमेणं एयारुवेणं ओएरालेणं विउलेणं पयतेणं पग्गहिएणं तवोकम्पेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावण किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोबासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमंयसि धम्मजागरियं जागरपाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पन्नित्थाएवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं जाव धमणिसंतए जाए त अत्थि ता मे उड्डाणे कम्मे बले चोरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-घिइ-संवेगे तं जावता मे उड्डाणे कम्मे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभावाए रयणीए जाव उट्टियपि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणवरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणाझूसियस भत्तपाण -पडियाइक्खियरस कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए एवं संपेहेइ संपेहेत्ता कल्लं पाउष्पभायाए रयणीए जाव उड्डियम्मि सूरे जाव विहरइ तए गं से कुंडकोलिए समणोबासए बहूहिं सील-व्यय-गुण- वेरमण-पचक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाई सममोवासगपरियागं पाणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता मासियाए संलेहजाए अत्ताणं सित्ता सट्टिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्त कालमा से कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवर्द्धिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थिमे णं अरुणज्झए विमाणे देवत्ताए उचवणे तत्य णं अत्येगइयाणं देवाणं चत्तारिपलि ओवमाई ठिई पत्रत्ता से णं भंते कुंडकोलिए ताओ देवलागाओ आउक्खएणं मवक्खएणं गोयमा महाविदेहे बासे सिज्झिहिइ बुज्झिहि मुच्चिहि सव्वदुक्खाण] अंतं काहिइ एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं उदासगदसाणं छस्स अज्झयणस्स अयमठ्ठे पन्नत्ते । ३८1-38 • छ अज्झयणं समत्तं । सत्तमं अज्झयणं- सदालपुत्ते (४१) [जइ णं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्त अंगस्स उबागसगदासणं छट्टस्स अज्झवणस्स अयमठ्ठे पन्नत्ते सत्तमस्स णं भंते अज्झवणस्स के अट्ठे पत्ते एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं ] पोलासपुरं नामं नयरं सहस्संबवणं उज्जाणं जियसत्तू राया तत्य पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुंभकारे आजीविओवासए परिवस आजीवियसयमयंसि लट्टे गहियडे पुच्छिय विणिच्छियट्टे अभिगवट्टे अट्ठमिंजपेमाणुरागरते अवमाउसो आजी For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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