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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Ya Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवासगदसाओ ६/३८ अस्थि उट्ठाणे इ वा [ कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार ] - परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं बयासी जइ णं देवागुपिया सुंदरी जं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्ती नत्थि उड्डाणेइवा जाव नियमा सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती अत्थी उड्डाणे इ वा जाव अनियता सव्वभावा तुमे णं देवाणुपिया इमा एयाख्वा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे किण्णा पत्ते किण्णा अभिसमण्णागए किं उड्डाणेणं [ कम्मेणं बलेणं वीरिएणं ] पुरिसक्कार- परक्कमे उदाहु अणुट्ठाणेणं [ अकम्पेणं अवलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कार-परक्कमेणं तए णं से देवे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं बयासी एवं खलु देवाणुप्पिया मए इमा एयाख्वा दिव्या देविड्ढी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्टाणेणं अकम्पेणं अवलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णा तए णं से कुंडको लिए समणोवासए तं देवं वयासी जड़ णं देवाणुप्पिया तुमे इना एघारूया दिव्या देवड्ढी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे अनुट्ठाणे [ अकम्मेणं अबलेणं अवरिएणं] अपुरिक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णा गए जैसि णं जीवाणं नत्थि उडाणे इ वा [कम्पे इवा वलं इवावीरिए इ वा पुरिसक्कार- परक्कमे इ वा ते किं न देवा अह तुम्मे इमा एयावा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे उट्टाणेणं कम्पेणं बलेणं विरीएणं पुरिसक्कार-परकूकमेणं] लदूधे पत्ते अभिसमण्णागए तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्तीनथ उठाइ वा [कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार- परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती-अत्थि उठाणे इ वा | कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे] इ वा अणियता सव्वभावा तं ते मिच्छा तए । 'देवे कुंडकोलिएणं समणोवासएणं एवं बुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छासमावण्णे कलुससभावण्णे नो संचाएइ कुंडकोलियरस समणोवासयस्स किंचि पभोक्खमाइक्खित्तए नाममुद्दगं च उत्तरिजयं च पुढविसिलपट्टए ठवेइ ठवेत्ता जामेव दिसं पाउडभूए ताममेव दिसं पडिगए तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे तए णं से कुंडकीलिए समणणोवासए इमीसे कहाए लवडे हट्ट जहा कामदेवो तहा निगच्छइ जाय पज्जुवासइ धम्पकहा [समाणे एवं खलु समणं भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइजमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरम्स नयरस बहिया सहस्सबंवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गह ओगिण्डित्ता संजमेणं तवसा अभ्माणं भावेमाणे विहरइ तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसिता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ संपेहेता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिए मणुस्वागुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाओ पडिणि- क्खमइ पडिणिक्खमित्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्झेणं निगच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संववणे उज्जाणं जेणेवं समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्तां तिक्खत्तो आग्राहिण-पयाहिणं करेइ करेत्तावंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता तिविहाए पजुवासणाए पञ्चासइ तए णं सगणे भगवं महावीरे कुंडकीलियस्स समणोवासयस्स तीसे व महइ महालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ] | ३६/-36 ( ३९ ) कुंडकोलियाइ समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं व्यासी- से नूणं कुंडकोलिया कालं तुमं पञ्चावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउादित्या For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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