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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनय-६ ३९ सामि एवं संपेइ संपेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय- मंगलं पायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई बत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं कंपिलपुरं नयरं मज्ज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणामेय सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेत्ता बंदइ नर्मसइ वंदित्ता नर्मसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नम॑समाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पजुवासर तणं समणे भगवं महावीरं कुंडकोलियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ परिसा पडिगया राया य दए तए णं कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उडाए उट्ठेइ उडेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी सद्दहामि णं भंते निग्गंथं पायवणं पत्तियामि गं भंते निग्गंथं पावयणं रोएमि णं भंते निग्गंधं पावयणं अध्भुङ्केमि णं भंते निग्गंधं पावयणं एवमेयं भंते तहमेयं भंते अवितहमेयं मंते असंदिद्धमेयं मंते इच्छियमेयं भंते पडिच्छियमेयं भंते इच्छियपडिच्छियमेयं भंते से जहेयं तुभे वदह जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर- तलवरमाइंबिय कोडुंबिय इब्ध-सेट्ठि- सेणावइ - सत्यवाहम्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारिय पव्वइया नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्ताए अहं णं देवाणुपियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवजिस्तानि अहासुहं देवाणुप्पिया मा पडिवंध करेहि तए णं से कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्मं पडिवज्रइ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ कंपिल्लपुराओ नयराओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव समणे निग्गंथे फासु-एसपिणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल पायपुंछणेणं ओसहभेसज्ञेणं पाडिहारिएण या पीढ-फलग - सेज्जा - संधारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ तए णं सा पूसा भारिया समणोबासिया जायाअभिगयजीवाजीया जाव] पडिलामेमाणी विहरइ | ३५/-95 (३८) तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अण्णदा कदाइ पञ्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जेणेव पुढविसिलापट्टए तेणेय उयागच्छइ उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवे ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स, अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपचित्ताणं विहरइ तए णं तस्सकुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाइं पंचवण्णाई बत्थाई पवर परिहिए कुंडकोलियं समणोबासयं एवं वयासी-हंभो कुंडकोलिया समणोवासया सुंदरी णं देवाणुप्पिया गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्पपन्नत्ती- नत्थि उड्डाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार- परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती- अस्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा बीरिए इ या पुरिसकूकार ] परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नतीत्ती For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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