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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० ज्याप्तमदासाओ २/२५ उवसंपजित्ता णं विहरइ नो खलु से सक्के केण देवेण वा दाणवेण या निग्गंधाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा तए णं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमई असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हव्यमागए तं अहो णं देवाणुप्पियाणं इङ्दी जुई जसो दलं वीरिवं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पते अभिसमण्णाए तं दिट्टा णं देवाणुप्पियाणंइड्ढी जाव अभिसमण्णागए तं खामेमि णं देवाणुप्पिया खमंतु णं देवाणुप्पिया खंतुपरिहंति णं देवाणुप्पिया नाई भुजो करणयाए त्ति कट्ट पावयडिए पंजलिउडे एयमटुं भुजो-मुनो खामेइ खामेता जामेव दिसं पाउभूए तामेव दिसं पडिगए से नूणं कामदेवा अढे सपढे हंता अस्यि अजोति समणे भगवं महाधीरे वह समणे निग्गंधे य निग्गंधीओ य आमंत्तेता एवं बवासी-जइ ताव अजो समणोवासगा गिहिणो गिहमज्झावसंता दिव्व-पाणस-तिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्मं सिहति खपति तितिक्खंति अहियासेंति सकका पुणाई अञ्जो समणेहिं निग्गंधेहिं दुवालसंगं गणिएडिगं अहिज्जमाणेहि दिव्य-माणस-तिरिकखजाोणिए उवसगे सम्मं सहितए जाव अहियासित्तए ततो ते बहवे निगंधा य निग्गंधीओ य समणस्स भगवओ पहावीरस्स तए त्ति एयमट्टे विणएणं पडिसुणेति तए णं से कामदेवे सपणोवासए हट्टतुट्ठ-जाव समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ अट्ठमादिवइ समणं भगवं पहावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं कोइ करेत्ता बंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउडभूए तामेव दिसं पडिगए तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ चंपाओ नवरीओ पडिणिक्खमइ पडिणिस्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहाइ।२५1-25 (२८) तए णं से कामदेवे सपणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपञ्जित्ता णं विहरइ [तए णं से कामदेवे समणोवासए पदम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामागं अहातचं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कितेइ आराहेइ तए णं से कामदेवे समणोवासए दो उवासगपडिमं एवं तचं चउत्यं पंचमं छटुं सतपं अट्ठमं नवमं दसमं एक्कारसम उवासगपडिम अहासुतं अहाकप्पं अहामगं अहातचं सम्मंकाएणंजाव आराहेइतएणं से कामदेवेसमणोवासए इमेणं एवारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुकूके लकुक्खे निम्मंसे अद्विचम्पावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए तए तं तस्स कामदेवस्स समणो वासयस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत काल समयंसि धम्मजागरियं जागरपाणस्स अयं अन्झथिए वितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्या-एवं खलु अहं इमेणं एयासवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तबोकम्मेणं सुक्के जाव घमणिसंतए जाए तं अत्यिता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-घिइ-संवेगे तं जावता मे अस्थि उहाणे कम्पे बले वीरिए पुरिस-कार-परक्कमे सद्धा-घिइ संवेगे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सहस्थी विहरइ तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स मतपाणपडियाइक्वि- यस्स कालं अणदक्खमाणस्स विहरित्तए एवं संपेहेइ संपेहेत्ता कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उष्ठियम्मि सूरे जाव मत्तपाण-पडियाइकिखए कालं अणवकंखयाणे विहरइतए णं से कामदेवे समणोवासए बहूहिँ [सील-व्यय-गुण-वेरपण पचक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं] भावेता दीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस व उवासगपडिमाओ समकाएणं फासित्ता मासिवाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छदेत्ता आलोइय For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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