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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपखंपो-१, अन्झयणं-१ सुमिणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा [जाव तं उराले णं तुमे देवाणुप्पिए सुमिणे दिढे जाव आरोग्गतुष्टि-दीहाउप-कल्लाण-मंगल-कारए णं तुमे देवि सुमिणे दिडे त्ति कट्ट] भुजो-भुञ्जो अनुवूहेइ तए णं सा धारिणी देवी सेणियस्स रण्णो अंतिए एवमढे सोचा निसम्म हतुह-चित्तपाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं सुमिणं सम्म पडिच्छति जेणेव सए वासधरे तेणेव उवागच्छइ उवागछित्ता हाया कवबलिकम्पा कय- कोउय- मंगल- पायच्छित्ता विपुलाइ भोगभोगाइं मुंजमाणी] विहाइ ।१२। -12 (१८) तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गन्मस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउलमवित्ता- धण्णाओ णं ताओ अप्पयाओ संपुग्णाओणं ताओ अम्पयाओ कचत्याओ णं ताओ अप्पयाओ कयपुन्नाओ णं ताओ अप्मयाओ कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ कयविहवाओ णं ताओ अप्मयाओ सुलद्धे णं तासि माणुरसए जम्मजीवियफले जाओ गं मेहेसु अब्भुगएसु अदभुन्नएसु अक्षुण्णएसु अभुष्टिएसु सगजिएम सविजुएसु सफुसिएसु सथणिएसुधंतधोर-रूप्पपट्ट-अंक-संख- चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिमप्पभेसु चिकुर-हरियाल-भेय-चंपग-सण-कोरेंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खारससरस-रत्तविसुय-जासुमण-रत्तबंधुजीवग-जातिहिंगुलप-सरस-कुंकुम -उरमससरुहिर- इंदगोवगसमप्पभेसु वाहिण-नील-गुलिय-सुगचासपिच्छ-भिंगपत्त-सासगनीलुप्पलनियर- नव- सिरीसकुसुम नवसद्दलसमप्यभेसु जचंजण भिंगभेयरिङग-भमरावलिगवलगुलिय कञ्जलसमप्पभेसु फुरंतविजुय-सगजिएसु वाववस - विपुलगगण - चवलपरिसक्किरेसु निम्मल - वरवारिधारा - पवलियपवइमास्यसमाहय-समास्थरत-उपरिउवरितुरियवासं पवालसिएसु धारा-पहकर निवा- वनिव्याविध मेइणितले हरिचगगणकुंचए पल्लविय पायव गणेसु वल्लिवियाणेमु पसरिएम उन्नएसु सोभग्गमुगएम वेभारगिरिप्पयाय-तड-कडविमुक्केसु उज्झरेसु तुरियपहाविय-पालोट्टफेगाउलं सकलुसं जलं बहतीसु गिरिनदीसु सञ्चजण-नीवकुडय-कंदल-सिलिंध-कलिएसु उववणेसु मेहरसिय - हट्ट - तुइविट्ठिय - हरिसवसपमुक्ककंटकेकारवं मुयंतेसु वरहिणेसु उउवस मयजणिय-तरुणसहय-रिपण-चिएसु नवसुरभि - सिलिंघ - कुडय - कंदल - कलंव - गंधद्धणिं मुयंतेसु उववणेसु परहुय रुव- रिभिव संकुलेसु उद्दाइंत-रत्तइंदगोवय-थोवय-कारुण्णविलविएस ओणवतणमंडिएसु ददुरपयंपि- एसु संपिडिय- दरिय- भमर- महुयरिपहकर- परिलिंत- मत्तछप्पय कुसुमासवलोल- महुर- गुंजंतदेसभाएतु उववणेसु परिसामिय चंद सूर · पहगण- पणट्ठ नमबत्ततारगपहे इंदाउह- बद्ध- चिंधपष्टम्मि अंदरतले उड्डीणयलागपंति -सोभंतमेहवंदे कारंडगचक्कवाय-कलहंस-उस्सुयकरे संपत्ते पाउसम्पि काले पहायाओ कयबलिकम्माओ कय - कोउय - मंगल - पायच्छित्ताओ किं ते वर - पायपत्तनेउर - मणिमेहल-हार - स्यइ - ओविय - कडग-खुद्य-विचित्तवरवलयर्थभियभुयाओ कुंडल- उज्जीवियाणणाओ रयणभूसियंगीओ नासानीसासवाय-योज्झं चक्खहां वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं धवलकणय-खचितकम्म आगासफलिह - सरिसप्पभं अंसुयं पवर परिहियाओ दुगूलसुकुमालउत्तरिजाओ सबोउय - सुरभिकुसुम-पवरमल्लसोभियसिराओ कालागरुधूवधूवियाओ सिरी-समाणवेसाओ सेयणय- गंधहस्थिरयणं दुरुढाओ समाणीओ सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिञ्जमाणेणं चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंड - संखुकुंद - दगरयअमयहियफेणपुंजसन्निगास - चउचामरवालवीजियं गीओ सेणिएणं For Private And Personal Use Only
SR No.009732
Book TitleAgam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages182
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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