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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयखंधो-१, अन्नपणं-१९ १६१ अइजागरएणं य अइभोयप्पप्तंगेण य से आहारे नो सम्मं परिणमइ तएणं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तंसि आहारंसि अपरिणम्माणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालयमंयसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया- उजाला विउला [कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा] दुरहियासा पित्तञ्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहाइ तए णं से कंडरीए राया रज्जे य रट्टे य अंतेउरे य [माणुस्सएसु य कापभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए] अज्झोववणे अदुहट्टवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढचीए उक्कोसकालडिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववण्णे एवामेव समणाउसो [जो अम्हं निग्गंथो या निग्गंधी वा आयरिय-उवम्झायाणं अंतिए मुंडे मवित्ता] पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सए कामभीए आसाएइ [पत्ययइ पोहेइ अभिलसइ से णं इह भवे चेव यहूणं समणाणं यहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं साबियाणं य हीलणिजे निंदणिजे खिसणिज्जे गरहणिजे परिभवणिज्जे परलोए वियणं आगच्छइ दहूणि दंडणाणि य मुंडणाणि य तजणाणि य तालणाणिय जाव चाउरतं संसारकंतारं मुजो-भुजो] अनुपरियट्टिस्सइ-जहा व से कंडरीए राया।१५१1-145 (२१८) तए णं से पुंडरीए अणगारे जेणेच थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ उदाच्छित्ता धेरे भगवंत वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता घेराणं अंतिए दोचंपि चाउञ्जामं धम्म पडिवजइ छट्टक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंड वीयाए पोरिसीए झाण झियाइ तइयाए पोरिसीए जाव उच्च-नीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणे सीयलुक्खं पाणभौयणं पडिगाहेइ पहिगाहेता अहापज्ञत्तमित्ति कटु पडिनियत्तेइ जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ उवागछित्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ पडिदंसेता थेरेहिं भगवंतेहिं अभणुण्णाए समाणे असुछिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोवयपणे बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं तं फासु-एसणिजं असण-पाणखाइम-साइमं सरीरकोहगंसि पक्खिवइ तए णं तस्स पुंडरीयस्त अणगारस्स तं कालाइक्कत अरसं विरसं सीयलुक्खं पाणभोयणं आहारिवस्त समाणस्स पुबत्तापरत- कालसयंसि धम्मजागरियं जागरपाणस्स से आहारे नो सम्यं परिणपइ तएणं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगंसि वेवणा पाउन्भूया उजला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए विहरइ तए णं से पुंडरीए अणगारे अत्यामे अबले अवीरिए अपुरिसककारपरकमे करयल [परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी__नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगइनामधेचं ठाणं संपत्ताणं नमोत्युण थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरिचाणं धम्मोवएसयाणं पवि पिय णं मए घेराणं अंतिए सब्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जाव बहिद्धादाणे पचखाए [इयाणि पिणं अहं तेसिं चेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पचक्खामि जाव बहिद्धादाणं पञ्चक्खामि सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं पचक्खामि चव्यिह पि आहारं पच्चस्खामि जावजीवाए जपि य इमं सरीरं इट्ट कंतं तं पि य णं चरिमेहिं उस्सासनीसासेहिं वोसिरामि त्ति कट्टा आलोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा सव्वदृसिद्धे उववणे तओ अणंतरं उबट्टिता महाविदेहे वासे सिज्झिहइ बुझिहिइ मुचिहिइ परिनव्वाहिइ सव्यदुक्खाणमंतं काहिइ एवामेव प्तपणाउसो [जो अहं निग्गंथो वा निग्गंधी वा आयरिय-उवग्झायाणं अंतिए मुंडे भक्त्तिा अगाराओ अणगारियं] पव्वइए समाणे माणुस्सएहि कामभोगेहिं नो सञ्जइ[नो रनइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अझोवज्झइ] नो विप्पडियायमावनइ से णं इहभवे चेव बहूर्ण समणाणं वहूर्ण समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिजे वंदणिज्ने नपंसणिजे 011 For Private And Personal Use Only
SR No.009732
Book TitleAgam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages182
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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