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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ भगवई - ३३/२/-१०२२ जहेव ओहिउद्देसए कण्हलेस्सअपजत्तासुहमपुढविक्काइयाणं भंते कइ कम्मष्पगडीओ पन्नत्ताओ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव मोहिउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ तहेव बंधति तहेव वेदेति सेवं भंते सेवं मंते ति, कतिविहा णं भंते अनंतरोवधनगकण्हलेस्सएगिंदिया पनत्ता गोयमा पंचविहा अनंतरोववनगा कण्हलेस्सा एगिंदिया एवं एएणं अभिलावणं तहेव दुयओ भेदो जाव वणस्सइकाइयत्ति अनंतरोववत्रगकण्हलेस्ससुहमपुढविक्काइयाणं भंते कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिओ अनंतरोववनगाणं उद्देसओ तहेवजाव वेदेति सेवं मंते सेवं भंते त्ति, कतिविहा णं भंते परंपरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिंदिया पत्नत्ता गोयमा पंचविहा परंपरोववनगा कण्हलेस्सा एगिदिया पत्रत्तातं जहा-पुढविक्काइया एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो जाव वणस्सइकायत्ति परंपरोववन्नगकण्हलेस्सअपज्जत्तासुहमपुढविकाइयाणं भंते कइ कामप्पगडीओ पत्रत्ताओ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ परंपरोववनगउद्देसओ तहेव जाव वेदेति एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिएगिंदियसए एक्कारस उद्देसगा भणिया तहेव कण्हलेस्सते विभाणियव्वा जावअचरिमचरिम कण्हलेस्सा एगिदिया।८४९१-848 तेत्तीसइमे सतेवीअंएनिदिय सतं समनं. जते तीस इ मे स ते-त इ अं-सतं (१०२३) जहा कण्हलेस्सेहिं भणियं एवं नीललेस्सेहिं वि सयं भाणियव्वं सेवं भंते सेवं भते ति।८५०-११-849-1 • तेत्तीसइमेसते तइअंसतं तमतं. ॐच उ त्यं-सतंज (१०२४) एवं काउलेस्सेहि वि सपं माणियब्वं नवरं-काउलेस्से ति अभिलाओ भाणियव्यो १८५०-२-850-2 .तेत्तीसइमेसते चउत्वं सतं समतं. -पंच-सतं :(१०२५) कतिविहा णं मंते भवसिद्धीया एगिदिया पन्नता गोयमा पंचविहा भवसिद्धीया एगिदिया पत्रत्ता तं जहा-पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया मेदो चउकओ जाव वणस्सइकाइयत्ति भवसिद्धीयअपनत्तासुहमपुढविक्काइयाणं भंते कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिदियसयं तहेव भवसिद्धीयसयं पि माणियध्वं उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमो त्ति सेवं भंते सेवं भंते ति।८५०-३।-850-3 .तेत्तीसइमेसते पंचमं सतंसमत्तं. - छटुं-स तं:(१०२६) कतिविहा णं मंते कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिदिया पन्नत्ता गोयमा पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पत्रत्ता तं जहा-पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविक्काइया णं भंते कतिविहा पत्रत्ता गोयमा दुविहा पनत्ता तं जहासुहुभपुढविक्काइया य बादरपुढविक्काइया य कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपुढविक्काइया णं मंते कतिविहा पन्नत्ता गोयमा दुविहा पत्रत्ता तं जहा-पज्जतमा य अपजतगा य एवं बादरा वि एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भाणियब्बो कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपजत्तासुहुमपुढविकूकाइयाणं भंते कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव जाव For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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