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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-३३, पटमे सते, उद्देसो-१ ४८१ घाणिदियवजं जिभिदियवझं इस्थिवेदवज्झं पुरिसवेदवज्झं एवं चउकएणं भेदेणं जावपञ्जत्ताबादरवणस्सइकाइया णं भंते कति कम्मप्पगडीओ वेदेति गोयमा एवं चेव चोद्दस्स कम्पप्पगडीओ वेदेति सेवं भंते सेवं मंते त्ति।८४५1-844 •तेत्तीसइमे मतेपदपे सते पढपो उद्देसो समतो. -घी ओ-उद्दे सो:(१०१९) कतिविहा णं भंते अनंतरोववत्रगा एगिंदिया पन्नत्ता गोयमा पंचविहा अनंतरोववनगा एगिदिया पत्रत्ता तंजहा-पृढविककाइया जाव वणस्सइकाइया, अनंतरोववनगा णं भंते पुढविक्काइया कतिविहा पन्नता गोयमा दुविहा पन्नत्ता तं जहा-सुहुमपुढविक्काइया य बादरपुढविककाइया च एवं दुपएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया अनंतरोववन्नगसुहमपुढविकाइयाणं भंते कति कम्पप्पगडीओ पनत्ताओ गोयमा अट्ठ कम्पप्पगडीओ पत्रत्ताओ तंजहानाणावरणिज्जं जाव अंतरायई अनंतरोववनगबादरपुढविक्काइयाणं भंते कति कम्मप्पगडीओ पत्रत्ताओ गोयमा अट्ठ कम्पप्पगडीओ पन्नत्ताओ तं जहा-नाणावरणिलं जाव अंतराइयं एवं जाव अनंतरोक्वन्नगबादरवणस्सइकाइयाणं ति अनंतरोववत्रगसुहमपुढविक्कइया णं मंते कति कम्पप्पगडीओ बंधंति गोयमा आउयवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति एवं जाय अनंतरोववत्रगवादरवणस्सइकाइय त्ति अनंतरोववन्नगसुहमपुदविक्काइया णं भंते कति कप्मप्पगडीओ वेदेति गोयमा चोद्दस कम्मप्पगडीओ वेदेति तं जहा-नाणावरणिलं तहेव जाव पुरिसवेदवज्जं एवं जाव अनंतरोववन्नगबादरवणस्सइकाइयत्तिसेवं भंते सेवं भंतेत्ति।८४६1845 •तेत्तीसहमे सते पढमे सते वीओ उद्देसो समतो. -: त इ ओ-उद्दे सो:(१०२०) कतिविहा णं मंते परंपरोक्वन्नगा एगिदिया पन्नत्ता गोयमा पंचविहा परंपरोववन्ना एगिदिया प.-पुढविक्काइया एवं चउक्कओ भेदो जहा ओहिउद्देसए परंपरोववनगअपञ्जतासुहुमपुढविक्काइयाण मंते कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ एवं एएणं अभिलावणं जहा ओहिउद्देसए तहेब निरवसेसं भाणियव्वं जाव चोद्दस वेदेति सेवं भंते सेवं मंतेत्ति।८४७1-846 • तेत्तीसइमे सते पटमे सते तइओउद्देसो सफ्तो. : उद्दे सा-४-११ :(१०२१) अनंतरोगाढा जहा अनंतरोववन्नमा परंपरोगाढा जहा परंपरोववनगा अनंतराहारगा जहा अनंतरोववनगा परंपराहारगा जहा परंपरोववनगा अनंतरपजत्तगा जहा अनंतरोववत्रगा परंपरपञ्जत्तगा जहा परंपरोक्वनन्गा चरिमा वि जहा परंपरोववत्रगा तहेव एवं अचरिपा वि एवं एए एक्कारस उद्देसगा सेवं भंते सेवं भंते ति जाव विहरइ १८४८1847 • तेत्तीसह सत्ते षटमे सते ४-११ उद्देसा समता तेतीसइमे सते पदमं सत समत्तं. जते तीस इ मे स ते - बी अंस तंज (१०२२) कतिविहा णं भंते कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता गोयमा पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पत्रत्ता तं जहा-पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया कण्हलेस्सा णं भंते पुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता गोवमा दुविहा पन्नता तं जहा-सुहमपुढविककाइया य बादरपुढविक्काइया य कण्हलेस्सा णं भंते सुहुमपुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता एवं एएणं अपिलावेणं चउक्कओ भेदो (530 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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