SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-२५, उद्देसो-७ ४५९ सेसं तं चैव, परिहारविसुद्धिए-पुच्छा गोयमा ओसप्पिणिकाले वा होजा उस्सप्पिणिकाले वा होजा नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणिकाले नो होज्जा जइ ओसप्पिणिकाले होजा-जहा पुलाओ उस्सप्पिणिकाले वि जहा पुलाओ सुहमसंपराइओ जहा नियंठो एवं अहक्खाओ वि।७९०1-789 (९४५) सामाइयसंजए णं भंते कालगए समाणे कं गतिं गच्छति गोयमा देवगतिं गच्छति देवगतिं गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववजेजा वाणमंतरेसु उवयजेजा जोइसिएसु उदवजेजा वेमाणिएतु उववजेजा गोयमा नो भवणवासीसु उववजेजा-जहा कसायकुसीले एवं छेदोवट्ठावणिए वि परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए सुहुमसंपराए जहा नियंठे अहक्खाए-पुच्छा गोयमा एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहण्णमणुक्कोसेणं अनुत्तरविमाणेसु उववज्जेजा अत्थेगतिए सिझति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति, सामाइयसंजए णं मंते देवलोगेसु उववञ्जमाणे किं इंदत्ताए उववनति-पुच्छा गोयमा अविराहणं पडुच्च एवं कसायकुसीले एवं छेदोवठ्ठाणिए वि परिहार-विसुद्धए जहा पुलाए सेसा जहा नियंठे सामाइयसंजस्सणं भंते देवलोगेसु उक्वजमाणस केवतियं कालं ठिती पत्रत्ता गोरमा जहाणेणं दो पलिओवमाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोदमाई एवं छेदोवट्ठावणिए वि परिहारविसुद्धियस्स-पुच्छा गोयमा जहणणं दो पलिओवमाई उककोसे अट्ठारस सागरोवमाइंसेसाणं जहा नियंठस्स ॥७९१।790 (१४६) सामाइयसंजयस्स णं भंते केवतिया संजमठाणा पन्नत्ता गोयमा असंखेजा संजमट्ठाणा पन्नत्ता एवं जाव परिहारविसुद्धियस्स सुहमसंपरायसंजयस्स-पुच्छा गोयपा असंखेजा अंतोमुतिया संजमट्टाणा पत्रत्ता अहक्खाथसंजयस्स-पुच्छा गोयमा एगे अजहण्णमणुककोसए संजमट्ठाण पत्रत्ते एएसि णं भंते सामाइय-छेदोवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिय-सुहमसंपरागअहस्खायसंजयाणं संजपढाणाणं कयो कयोहिंतो जाव विसेसाहिया वा गोयमा सवयोवे अहक्खायसंजमस्स एगे अजहण्णमणुक्कोसए संजमट्ठाणे सुहुमसंपरागसंजयस्स अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा असंखेनगुणा परिहारविसुद्धियसंजयस्स संजपट्टाणं असंखेनगुणा सामाइयसंजयस्स छेदोयट्ठावणियसंजयस्स य एएसिणं संजमणडाणा दोण्ह वितुल्ला असंखेनगुणा १७९२१-791 (९४७) सामाइयसंजयस्सणं भंते केवइया चरित्तपनवा पन्नत्ता गोयमअनंता चरित्तपञ्जया पन्नता एवं जाव अहक्खायसंजयस्स सामाइयसंजए णं भंते सामइयसंजयस्स सट्ठाणसण्णिगासेणं चरितपनवेहि किं होणे तुल्ले अभिहिए गोयमा सिय हीणे-छट्ठाणवडिए सामाइयसंजए णं भंते छेदोवढावणियसंजयस्स परट्ठाणसणियागासेणं चरित्तपत्रवेहिं-पुच्छा गोयपा सिय हीणेछट्ठाणवडिए एवं परिहारविसुद्धियस्स वि सामाइवसंजए णं भंते सुहमसंपरागसंजयरस परट्ठाणसण्णिगासेणं चरित्तपज्जवेहि-पुच्छा गोयमा हीणे नो तुल्ले नो अमहिए अनंतगुणहीणे एवं अक्खाया संजयस्स वि एवं छेदोवद्यावणिए वि हेहिलेसु तिसु वि समं छट्ठाणवड़िए उवरिल्लेमु दोसु तहेब हीणे जहा छेदोवट्ठावणिए तहा परिहारविसुद्धिए वि सुहमसंपरागसंजए णं भंते सामाइयसंजयस्स परट्ठाण-पुच्छा गोयमा नो हीणे नो तुल्ले अभहिए-अनंतगुणमब्भहिए एवं छेओवट्ठावणिय परिहारविसुद्धिएसु वि समं सट्ठाणे सिय हीणे नो तुल्ले सिय अमहिए जइ हीणे अनंतगुणहीणे अह-अमहिए अनंतगुणमन्भहिए सुहमसंपरायसंजयस्स अहक्खायसंजयस्स परट्ठाण-पुछा गोयपा हीणे नो तुल्ले नो अन्भहिए अनंतगुणहीणे अहक्खाए हेछिल्ला णं चउण्ह वि नो हीणे नो तुल्ले अभहिएअनंतगुणमदमहिए सहाणे नो हीणे तुल्ले नो अमहिए एएसि णं भते For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy