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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ भागवई - २५/३/८७५ नो तेओयाओ नो दावरजुम्माओ नो कलियोगाओ एवं जाव उड्ढमहायताओ लोगागाससेढीओ एवं चेव एवं अलोगागास सेढीओ वि सेढीओणं भंते पदेसट्टाए किं कडजुम्माओ एवं चेव एवं जाव उड्ढमहायताओ लोगागाससेढीओ णं पंते पदेसठ्याए-पुच्छा गोयमा सिय कडजुम्माओ नो तेओयाओ सिय दावरजुम्माओ नो कलियोगाओ एवं पाईणपडीणायताओ वि दाहिणुत्तरायताओ वि उड्ढमहायताओ णं भंते पवेसट्ठयाए-पुच्छा गोयमा कडजुम्माओ नो तेओगाओ नो दावरजुम्माओ नो कलियोगाओ अलोगागाससेढीओ णं मंते पदेसठ्ठयाए-पच्छा गोयमा सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलियोगाओ एवं पाईणपडीणावताओ वि एवं दाहिणुतरायताओ वि उड्ढमहायताओ वि एवं चेव नर-नो कलियोगाओ सेसंतं चेव १७३०1-729 (८७६) कति णं भंते सेढीओ पन्नताओ गोयमा सत्त सेढोओ पन्नत्ताओतं जहा-उडआयता एगओवंका दुहओवंका एगओखहा दुहओखहा चक्कवाला अद्धचक्कवाला, परमाणुपोग्गलाणं भंते किं अणुसेदि गती पवत्तति विसेटिंगती पवत्तति गोयमा अणुसेदि गती पयत्तति नो रिसेदि गती पवत्तति दुपएसियाणं भंते खंधाणं अनुप्लेदि गती पवत्तति विसेदि गती पवत्तति एवं चेव एवं जाव अनंतपदेसियाणं खंधाणं नेरइयाणं भंते किं अनुसेढिं गती पवत्तति विसेढिं गती पवतति एवं चेव एवं जाव केमाणियाणं ७३१।-730 १८७७) इमीसे णं भंते रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयागसमयसहस्सा पनत्ता गोवमा तीसंपन्नत्ता एवं जहा पढपसते पंचमुद्देसए जाव अनुत्तरविमाण ति७३२।-731 (८७८) कतिविहे णं भंते गणिपिडए पत्रत्ते गोवमा दुवालसंगे गणिपिडए पन्नत्ते तं जहाआवारो जाव दिट्ठीवाओ से किं तं आयारो आयारे णं सपणाणं निनग्गंधाणं आयार-गोयरविणयवेणइय-सिक्खा-भासा-अभासा-चरण करण-आया-माया-वित्तीओ आवविखंति एवं अंगपरूवणा भाणियव्या जहा नंदीए जिाव- १७३३! -732 (८७९) सुत्तत्थो खलु पढपो बीओ निजृतिमीसओ भणिओ तइओय निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे ॥९४||-1 (८८०) एएसिणं मंते नेरइयाणं जाय देवाणं सिद्धाण व पंचगतिसमासेणं कयरे कयरहितो पुच्छा गोयमा अप्पादहुयं जहा बहुक्त्तव्बयाए अद्वगतिसमासप्पाबहुगं व एएसि णं भंते संइदियामं एगिदियाणं जाव अणिदियाण य कयरे कयोहिंतो अप्पा वा जाब विसेसाहिया वा एवं पि जहा बहुवत्तव्वयाए तहेव ओहियं एवं भाणियव्वं सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणियब्द एएसि णं भंते जीवाणं पोग्गलाणं जाव सब्बपञवाण व कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा जहा बहुवत्तव्बयाए एएसि णं भंते जीवाणं आउयस्स कम्मस्स बंधगाणं अबंधगाणं जहा बहुवत्तव्ववाए जाव आउयस्स कम्मरस अबंधगा विसेसाहिया सेवं भंते सेवं भंते ति।७३४।-733 पंचवीसइमे सते तइओ उद्देसो सफ्तो. - च उत्थो- उसो :(८८१) कति णं भंते जुमा पन्नत्ता गोयमा चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता तं जहा कडजुम्मे जाव कलियोगे से केणद्वेणं भंते एवं वुच्चइ-चत्तारि जुम्मा पनत्ता-कडजुम्मे जाव कलियोगे एवं जहा अट्ठारसमसते चउत्थे उद्देसए तहेर जाव से तेणटेणं गोयमा एवं युच्चइ नेरइयाण मंते कति जुम्मा पन्नत्ता गोयमा चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता तं जहा-कडजुम्मे जाव कलियोगे से केपट्टेणं भंते एवं वुचइनेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पत्रता तं जहा-कडजुम्मे अट्ठो तहेव एवं जाव वाउकाइयाणं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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