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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-२०, उदेसो-६ ३८९ अहेसत्तमाए एव सहस्सारस्स आणय-पाणय-कप्पाण य अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एंव आणय-पाणायणं आरणछुवाण य कप्पाणं अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एव आणयपाणयाणं आरणबुयाण य कप्पाणं अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं आरणच्चुयाणं गेयेविमाणाण य अंतरा जाव अहेसत्तभाए एवं गेवेचविमाणाणं अनुत्तरविमाणाण व अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं अनुतरविमाणाणं ईसीपभाराए व पुणरवि जाव अहेसत्तपाए उववाएयव्यो।६७२1-671 (७९०) आउक्काइए णं भंते इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहप्पे कप्पे आउक्काइयत्ताए उववञ्जित्तए सेसं जहा पुढविक्काइवस्म जाव से तेणटेणं एवं पढम-दो चाणं अंतरा समोहए जाव ईसीपडमाराए उववाएयव्यो एवं एएणं कमेणं जाव तपाए अहेसत्तमाए च पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जाव ईसीपदभाराए उववाचव्यो आरक्काइयत्ताए आउयाए णं भंते सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार-माहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहिधणोदहिलएसु आउककाइवताए उववचित्तए सेसं तं चेव एवं एएहि चेव अंतरा समोहओ जाच अहेसत्तमाए पुढवीए घणोदहि-धणोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववाएयव्यो एवं जाव अनुत्तरविमाणाणं ईसीपभाराए च पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहेसत्तमाए धणोदहि-धणोदहिवलएस उववाएयव्यो।६७३1-672 (७९१) वाउक्काइएणं भंते इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहणिता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववञ्जित्तए एवं जहा सत्तासपसए बाउक्काइयउद्देसए तहा इह वि नवरं-अंतरेसु समोहणा नेयव्या सेसं तं चेव जाव अनुत्तरविमाणाणं ईसीपटयाए य पुढवीए अंतरा सपोहए समोहणित्ता जे भविए घणवाय-तणवाए घणवाय-तणुवायवल एसु वाउक्काइयत्ताए ज्ववजित्तए सेसं तं चेव जाव से तणद्वेणं जाय उववलेजा सेवं भंते सेचं मंते त्ति।६७४1-873 .वीसइमे सते छटो जसो समतो. -: स त पो-उ हे सो:(७९२) कतिविहे णं भंते बंधे पनत्ते गोयमा तियिहे बंधे पत्नत्ते तं जहा-जीवप्पयोगबंधे अनंताबंधे परंपरवंधे नेरइयाणं भंते कतिविहे बंधे पनते एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं नाणावरणिन्नस्स णं मंते कम्पस्स कतिविहे बंधे पनत्ते गोयमा तिविहे बंधे पन्नते तं जहाजीवप्पयोगबंधे अनंतरवंधे परंपरबंधे नेरइयाणं भंते नाणावरणिजस्स कम्मस्स कतिविहे बंधे पत्रते एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं एवं जाव अंतराइयस्स नाणावरणिनोदयस्स णं भंते कम्मस कतिदिहे बंधे पन्नत्ते गोयमा तिविहे बंधे पन्नत्ते एवं चेव एवं नेरइयाणं वि एवं जाव वेमाणियाणं एवं जाव अंतराइओदयस्स, इत्थीवेदस्स णं भंते कम्पस्स कतिविहे बंधे पत्रत्ते गोयमा तिविहे बंधे पत्रत्ते एवं चेव असुरकुपाराणं भंते इत्थीवेदस्स कम्पस्स कतिविहे बंधे पत्रत्ते एवं चेव एवं जाद वेमाणियाणं नवरं-जस्स इस्थिवेदो अस्थि एवं पुरिसवेदस्स वि एवं नपुंसगयेदस्स वि जाय वेमाणियाणं नवरं-जस्स जो अत्यि वेदो, दसणमोहणिजस्स णं भंते कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते एवं चेव निरंतरं जाव वेमाणियाणं एवं चरित्तमोहणिजस्स वि जाव वेमाणियाणं एवं एएणं कमेणं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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