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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं - २०, उद्देसो-२ ३८१ (७८२) धम्मस्थिकायस्स णं भंते केदतिया अभिवयणा पत्रत्ता गोयमा अगेगा अभिवयणा पन्नता तं जहा धम्मे इ वा धम्मस्थिकाये इ वा पाणाइवायवेरमणे इ वा मुसावायवेरमणे इ वा एवं जाव परिग्गहवेरमणे इ वा कोहविवेगे इ वा जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे इ वा इरियासमिती इ वा मासासमिती इ वा एसणासमिती इ वा आयाणभंडमत्तनिखेवसमिती इ वा उच्चारपासत्रणखेलसिंघाणजल्लपारि द्वावणियासमिती इ वा मणगुत्ती इ वा बइगुत्ती इ वा कायगुत्ती इ वा जे यावगे तहष्पगारा सच्चे ते धम्मत्थिकायस्स अभिवयणा अधम्मत्थिकायस्स [णं मंते केवलिया अभिया पत्ता ] गोयमा अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता तं जहा - अधम्मे इ वा अधम्मत्थिकाए इ वा पाणाइवाए इ वा जाव मिच्छादंसणसल्ले इ वा रियाजसनिती इ वा जाव उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्ल पारिट्ठावणिया अस्समिती इ बाइ मणअगुती इ वा वइअगुत्ती इ वा कायअगुती इ वा जे यावणे तहष्पगारा सव्वे ते अधम्मत्थिकायस्स अभिवयणा आगासस्थिकायस्स [णं भंते केवतिया अभिaणा पत्ता गोयमा अणेगा अभिववणा पत्रत्ता तं जहा आगासे इ वा आगासत्धिका इ इवान इवासमे इ वा विसमे इ वा खहे इ वा विहे इ वा वीवी इ वा विवरे इ वा अंबरे इ वा अंबरसे इ वा छिड्डेइ वा झुसिरे इ वा मध्ने इ वा विमुहे इ वा अट्ठे इ वा वियट्टे इ वा आधारे इ वा वोमे इवा भायणे वा अंतलिक्खे इ वा रगमे इ वा ओवासंतरे इ वा अगमे इ वा फलिहे इ वा अनंते इ बा जे यावणे तपगारा सव्वे ते आगासत्धिकायरस अभिवयणा जीवत्यिकायस्स णं भंते केवतिया अभिवयणा पत्रत्ता गोया अणेगा अभिवया पन्नता तं जहा जीवे इ वा जीवत्थिकाए इ वा पाणे इवाइ वा सत्तेइ वा विष्णू इ वा वेया इ वा चेथा इ वा जेया इ वा आया इ वा रंगणे इ वा हिंदुए इ वा पोगले इ वा माणचे इ वा कत्ता इ वा विकत्ता इ वा जाए इ वा जंतू इ वा जोणी इ वा सयंभू इवा ससरीरी इ वा नायए इ वा अंतरपाइ वा जे चावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते जीवत्धिकायस्स अभिवयणा पोग्गलत्थिकायस्स णं [ भंते केवतिया अभिवयणा पत्रत्ता ] गोयमा अणेगा अभिवयणा पत्रता तं जहा पोग्गले इ वा पोग्गलत्यिकाए इ वा परमाणुपोग्गले इ वा दुपएसिए इ वा तिपएसिए इ वा जाव असंखेज्जपएसिए इ वा अनंतपएसिए इ वा खंधे जे यावणे तहष्पगारा सव्वे पोलत्विकायस्स अभिवयणा सेवं घंते सेवं भंते ति । ६६५। - 664 । बीसइमे सते बी ओ उद्देसो सम्पत्ती । - त इ ओ - उ द्दे सो - (७८३) अह भंते पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले पाणातिवायवेरमणेजाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे उप्पत्तिया । वेणइया कम्मया । पारिणामिया ओग्गहे [ ईहा अवाए | धारणा उट्टा कम्पे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे नेरइयत्ते असुरकुमारते जाव वेमाणियत्ते नाणावरणिजे जाव अंतराइए कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा सम्मदिट्ठी मिच्छदिठ्ठी सम्मामिच्छदिट्ठी चक्खुदंसणे अचक्खुदंसणे ओहिदंसणे केवलदंसणे आभिणिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे आहारसण्णा भवसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा ओरालियसरीरे वेउव्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयगसरीरे कम्मगसरीरे मणजोगे बइजोगे कायजोगे सागारोवओगे अणागारोवओगे जे याव तहष्पगारा सव्वे नन्नत्य आयाए परिणमंति हंता गोयमा पाणाईवाए जाव सव्वे ते नन्नत्थ आयाए परिणमति । ६६६। 665 (७८४) जीवे णं भंते गब्धं वक्कपमाणे कतिवण्णं कतिगंधं कतिरसं कतिफासंपरिणामं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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