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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ भगवई - १८/-/१/७२२ बेमाणिए सिद्धे पढमे नो अपढमे पुहतिया जीवा पढमा वि अपढयमा वि एवं जाव वैमाणिया सिद्धा पढमा नो अपढमा मिच्छादिट्ठीए एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारगा सम्मामिच्छदिट्ठी एगत्तंपुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी नवरं जस्स अस्थि सम्मामिच्छतं, संजए जीवे मणुस्से य एगत्त-पुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी असंजए जहा आहारए संजयासंजए जीवे पंचिंदियतिरिक्खजोणिय - मणुस्सा एमत्तपुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी नोसंजए नो असंजए नोसंजयासंजए जीवे सिद्धे य एगत्त-पुहत्तेणं पढमे नो अपढमे, सकसायी कोहकसायी जाव लोभकसायी-एए एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए अकसायी जीवे सिय पढमे सिय अपढमे एवं मणुस्से वि सिद्धे पढमे नो अपढने पुहत्तेणं जीवा मणुस्सा वि पढमा वि अपढमा वि सिद्धा पढमा नो अपढमा नाणी एगत्त-पुहत्तेणं एवं चेव नवरं जस्स जं अस्थि केवलनाणी जीवे मणुस्से सिद्धे य एगत्त-पुहत्तेणं पढमा नो अपढमा अन्नाणी मइअन्नाणी अन्नाणी दिभंगनाणी य एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए, सजोगी मणजोगी वइजोगी कायजोगी एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए नवरं जस्स जो जोगो अत्थि अजोगी जीव मणुस्स-सिद्धा एगत्तपुहत्तेणं पढमा नो अपदमा, सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता एगत्त-पुहत्तेणं जहा अणाहारए सवेदगो जाब नपुंसगवेदगो एगत्त-पुहत्तेणं आहारए नवरं जस्स जो वेदो अस्थि अवेदओ एगत्तपुहत्तेणं तिसु वि पदेषु जहा अकसाथी ससरीरी जहा आहारए एवं जाव कम्मगसरीरी जस्स जं अस्थि सरीरं नवरं-आहारगसरीरी एगत्त-पुहत्तेगंजहा सम्मदिट्ठी असरीरी जीवो सिद्धो य एगत्तपुहत्तेणं पढमो नो अपढमो पंचहिं पञ्जत्तीहिं पंचहिं अपज्जतीहिं एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए नवरंजस्स जा अस्थि वेमाणिया नो पढमा अपढमा इमा लक्खणगाहा १६१७-१-616-1 (७२३) जो जेणं पत्तपुन्चो भावो सो तेणं अपढमओ होइ सेसेसु होइ पढमो अपत्तपुव्येसु भावेसु 110811-1 (७२४) जीवे णं भंते जीवभावेणं किं चरिने अचरिमे गोयमा नो चरिमे अचरिमे नेरइए णं भंते नेरइयभावेणं-पुच्छा गोयमा सिय चरिमे सिय अचरिमे एवं जाव वेमाणिए सिद्धे जहा जीवे जीवा - पुच्छा गोयमा नो चरिमा अचरिमा नेरइया चरिमा वि अचरिमा वि एवं जाव वैमाणिया सिद्धा जहा जीवा आहारए सव्वस्य एगत्तेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे पुहत्तेणं चरिमा वि अचरिमा वि अणाहाराओ जीवो सिद्धो य एगत्तेणवि पुहत्तेणं वि नो चरिमो अचरिमो सेसड्डाणेषु एगत्तपुहत्तेणं जहा आहारओ भवसिद्धीओ जीवपदे एगत्त-पुहत्तेणं चरिमे नो अचरिमे सेसट्टाणेसु जहा आहारओ अभवसिद्धीओ सव्वत्य एगत्त-पुहत्तेणं नो चरिमे अचरिमे नोभवसिद्धीय नोअपवसिद्धीजीवा सिद्धाय एगत्त-पुहत्तेणं जहा अभवसिद्धीओ, सण्णी जहा आहारओ एवं असण्णी वि नोसण्णी - नो असण्णी जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमे मणुस्सपदे चरिमे एगत्त-पुहतेणं सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सी जहा आहारओ नवरं जस्स जा अत्थि अलेस्सो जहा नोसण्णी - नोअसण्णी सम्पदिट्ठी जहा अणाहारओ मिच्छादिट्टी जहा आहाराओ सम्मामिच्छदिट्ठी एगिंदिय-विगलिंदिय वज्रं सिव चरिमे सिय अचरिमे पुहत्तेणं चरिमा वि अचरिमा वि संजओ जीवो मणुस्सो य जहा आहारओ अस्संजओ वि तहेत संजयासंजए वि तहेव नवरं जस्स जं अस्थि नोसंजय-नोअसंजयनोसंजयासंजओ जहा नोभवसिद्धीय-नो अभवसिद्धीओ सकसाथी जाव लोभकसायी सव्वद्वाणेसु जहा आहारओ अकसायी जीवपदे सिद्धे व नो चरिमे अचरिमे मणुस्सपदे सिय चरिमे सिय अचरिनाणी जहा सम्मद्दिट्ठी सव्वत्थ आभिणिबोहियनाणी जाव मणपचवनाणी जहा आहारओ नवरं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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