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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - १६/-14/७११ सव्वकप्पेसु जाव ईसिंपटमाराए तहेव उववाएयब्यो एवं जहा रयणप्पमआउककाइओ उववाइओ तहा जाब अहेसत्तमाआउकाइओ उववाएयच्चो जाय ईसिंपधाराए सेवं भंते सेवं भंते त्ति ६०७/-806 • सत्तरसपे सत्ते अट्ठमो उद्देसो समत्तो. -: 7 व मो-उद्दे सो :(७१२) आउक्काइए णं पंते सोहम्मे कप्पे सपोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुटवीए घणोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उवयजित्तए से णं भंते सेसं तं चेव एवं जाव अहेसत्तमाए जहा सोहम्माउक्काइओ एवं जाव ईसिंपटमाराआउक्काइओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयब्वो सेवं मंते सेवं भंते ति।६०८1-607 सत्तरसमे सते नवमो उद्देसो समतो. -: द स मो-उदे सो :(७१३) वाउक्काइए णं मंते इपीसे रयणप्पभाए जाय जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववजित्तए से णं पते जहा पुढविक्काइओ तहा बाउक्काइओ वि नवरंवाउक्काइयाणं चत्तारि सपुग्धाया पनता तं जहा-वेदणा-समुग्धाए जाव वेउव्यियसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए णं सपोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओईसिंपब्हाराए उववाएयव्यो सेवं पंते सेवं भंतेत्ति।६०९।-608 सत्तरसपे सते दसमो उद्देसो समतो. - इक्का र स मो-उदे सो :(७१४) वाउकूकाइए णं भंते सोहम्मे कपणे समोहए समोहणिता जे भविए इमीसे रयणप्पभापुढवीए घणवाए तणुयाए धणवायवलएसुतणुवायवलएसुवाउक्काइयत्ताए उववज्जितए से णं भंते सेसं तं चेव एवं जहा सोहम्मे वाउकाइओ सत्तसु वि पुढवीसु उववाइमओ एवं जाव ईसिंपटमारावाउकाइओ अहेसत्तमाए जाव उववाइयव्बो सेवं भंते सेवं मंते ति।६१०।-609 सतरसमे सते इकुकारसमो उद्देसो सपत्तो. -: बा र स मो-उदे सो :(७१५) एगिदिया णं भंते सव्वे समाहारा एवं जहा पढमसए बितियउद्देसए पुढविक्काइयाणं बत्तब्बवा भणिया सा चेव एगिंदियाणं इह भाणिवव्या जाव समाउया समोववनगा एगिदिवाणं भंते कति लेस्साओ पनत्ताओ गोयमा चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ तं जहा-कण्हलेस्सा [नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा एएसिं णं भंते एगिदियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साणं य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा गोयमा सव्वत्थोवा एगिदिया तेउलेस्सा काउलेस्सा अनंतगुणा नीललेस्सा विसेसाहिया कण्हलेस्सा विसेसाहिया एएसिणं भंते एगिदियाणं कण्हलेसाणं इड्ढी जहेव दीवकुमाराणं सेवं भंते सेवं भंतेत्ति।६११।610 • सतरसमे सत्ते गारसमो उद्देसो समतो. -ते र समो-उसो :(७१६) नागकुमाराणं णं भंते सव्वे समाहारा जहा सोलसपसए दीवकुमारुद्देसे तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जावइड्ढी सेवं मंते सेवं भंतेजाव विहरइ।६१२१-811 सतरसमे सते तेरसमो उद्देसो समतो. For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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