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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पमं सतं - उदेसो-७ वंते इ वा पिते इ वा जीवे णं भंते गव्यगए समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारमाहारित्तए गोयपा नो इणढे समढे से केणद्वेणं गोयमा जीवे णं गभगए समाणे सव्वओ आहारेइ सव्वओ परिणामेइ सव्वओ उस्सइ सबओ निस्ससइ अभिक्खणं आहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं उस्ससइ अभिक्खणं निस्ससइ आहच्च आहारेइ आहच्च परिणामेइ आहन्छ उस्ससइ आहच्च निस्ससइ माउजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवंफुडा-तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेइ अवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवंफुडा-तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिगाइ से तेगडेणं [गोयमा एवं वुच्चइ-जीवेणं गमगए समाणे] नो पभू मुहेणं कावलियं आहारमाहारितए कइ णं भते माइयंगा पनत्ता गोयपा तओ माइयंगा पत्रता तं जहा-मसे सोणिए मत्थुलुंगे कइ णं भंते पेतियंगा पन्नत्ता गोयमा तओ पेति- यंगा पत्रत्ता तं जहा-अट्ठि अद्विमिजा केस मंसु रोम-नहे अम्मापेइए णं मंते सरीरए केवइयं कालं संचिट्ठ इ गोयमा जावइयं से कालं पवधारणिजे सरीरए अव्ववत्रे भवइ एवतियं कालं संचिट्ठइ अहे णं समए-समए वोयसिजमाणे-वोयसिञ्जमाणे चरिम बालसमयसि वोच्छित्रन भवइ ।६२-62 (४) जीवे णं भंते गभगए समाणे नेरइएतु उववशेजा गोयमा अत्येगइए उवबजेता अत्यंगइए नो उववजेता से केणटेणं भंते एवं बुच्चइ-अत्यंगइए उववजेज्जा अत्थेगइए नो उववजेजा गोयपा से णं सण्णी पंचिंदिए सवाहिं पजत्तीहिं पजत्तए वीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए पराणीयं आगयं सोया निसम्म पएसे निच्छुभइ निच्छुभिता देउब्बियसमुग्धाएणं समोहण्णइ समोहणित्ता चाउरंगिणि सेणं विउव्वइ विउवित्ता चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएगं सद्धिं संगाम संगापेइ से णं जीवे अत्यकामए रजकामए भोगकामए कामकामए अथकंखिए रजकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए अस्थपिवासिए रजपिवासिए भोगपिवासिए कामर्पिवासिए तच्चित्ते तप्मणे तल्लेसे तदन्झवसिए तत्तिव्वज्झबसाणे तदट्टोवउत्ते तदप्पियकरणे तडभावणाभाविए एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज नेरइएसु उववजह से तेणटेणं पोयमा एवं वुच्चइ-अत्यगइए उववजेजा अत्थेगइए नो उवव झा जीवा णं भंते गभगए समाणे देवलोगेसु उववजेजा गोयमा अत्थेगइए उववजेजा अत्थेगइए नो उववजेज्जा से केणद्वेणं भंते एवं वुच्चइ-अत्येगइए उववजेजा अत्धेगइए नो उववओझा गोयपा से णं सण्णी पंचिंदिए सब्याहिं पञ्जतीहिं पजत्तए तहास्वस्स समणस्स वा माणस्स अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्मं तओ भवइ संवेगजायसड्ढ तिव्यधम्माणुरागरते से णं जीवे धमकासए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए धम्मकंखिए पुण्णकंखिए सग्गकंखिए मोक्खंखिए धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिहए तच्चित्ते तम्मेण तल्लेसे तदन्झवसिए तत्तिव्यन्झवसाणे तद्दठोवउत्ते तदपिपयकरणे तब्मावणाभाविए एयसि णं अंतरंसि कालं करेज देवलोगेसु उक्वजई से तेणद्वेणं गोयमा एवं वुच्चइ-अत्येगइए उववज्जेज्जा अत्यगइए नो ज्ववलेना जीवे णं भंते गब्मगए समाणे उत्तागए वा पासल्लए वा अंबखुजए वा अच्छेन वा चिटेजा वा निसीएन वा तुयद्देशा वा माउए सुयमाणीए सुबह जागरपाणीए जागरइ सुहियाए सुहिए भवइ दुहियाए दुहिए भवइ हंता गोयमा जीवे णं गभगए समाणे उताणए वा पासल्लए वा अंबखुजए वा चिटेज वा निसीएजा वा तुयट्टेज वा माउए सुयमाणीए सुवइ जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहिए भवइ दुहियाए दुहिए भवइ अहे णं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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