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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवाई • 91-1010 रइए णं भंते नेरइएसु उववजमाणे किं अद्धेणं अद्धं उववजइ अद्धेणं सव्वं उववाइ सव्वेणं अद्धं उववाइ सब्वेणं सव्वं उववज्जइ जहा पढमिल्लेणं अट्ठ दंडगा तहा अद्धेण विट्ठ दंडगा भाणियव्या नवरं जहि देसेणं देसं उववज्जइ तहिं अद्धेणं अद्धं उववञ्जइ इति भाणियव्वं एयं नाणत्तं एते सव्वे वि सोलस दंडगा भाणियव्या ५९।-59 (८१) जीवे णं भंते किं विग्गहगइसमावण्णए अविग्गहगइसमावण्णए गोयमा सिय विग्गहगइसमावण्णए सिय अविग्गहगइसमण्णए एवं जाव वैमाणिए जीवा णं मंते किं विग्गहगइसमावण्णया अविग्गहगइसमावण्या गोयमा विग्गहगइसमावण्णगा वि अविग्गहगइस मावण्णगा वि नेरइया णं भंते किं विग्गहगइसमावण्णगा अविग्गहगइसमावरणगा गोवमा सव्वे वि ताव होज अविग्गहगइसमावण्णगा अहवा अविग्गहगइसमावण्णगा विगहगइसमावण्णगे व अहवा अविग्गहगइसमावण्णगा य विग्गहगइसमावण्णगा य एवं जीवएगि. दियवञ्जो तियभंगो ।६०1-60 (८२) देवे णं भंते पहिड्ढिए महजइए महब्बले महायसे महेसकखे महाणभारे अविउककंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरिवत्तियं दुगंछावत्तियं परीसयतिवं आहारं नो आहारेइ अहे णं आहारेइ आहारिजमाणे आहारिए परिणामिज्जमाणे परिणामिए पहीणे य आउए भवइ जत्य उववञ्जइ तं आउयं पडिसंवेदेइ तं जहा-तिरिक्खजोणियाउयं वा मणुस्साउयं वा हता गोवमा देवेणं महिड्ढिए महइए महब्बले महायसे महेसस्खे पहाणुभावे अविउक्कंतिय चवमाणे किंचिकालं हिरवत्तियं दुगंछावत्तियं परीसहवत्तियं आहारं नो आहेरइ अहे णं आहरेइ आहारिञ्जमाणे आहारिए परिणामिजमाणे परिणामिए पहीणे य आउए भवइ जत्थ उववञ्जइ तं आउयं पडिसंवेदेइ तं जहा-तिरिक्खोणियाउयं वा] मणुस्साउवं वा ।६१1-61 (८३) जीवे णं भंते गब्मं वक्कममाणे सइंदिए वक्कमइ अणिदिए वक्कमइ गोयपा सिय सइंदिए वककमइ सिय अणिदिए वक्कमइ से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ-सिय संइदिए वक्कमइ सिय अणिदिए वक्कमइ गोयमा दबिंदियाइं पडुच्च अणिदिए वक्कमइ भाविंदियाई पडुच्च सइंदिए वक्कमइ से तेणटेणं गोयमा एवं बुच्चाइ-सिय सइंदिए वक्कमइ सिय अणिदिए वक्कमइ जीवे णं पंते गमं वक्कममाणे किं ससरीरी वक्कमइ असरीरी वक्कमइ गोयमा सिव ससरीरी वक्कमइ सिव असरीरी वक्कमइ से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ-सिव ससरीरी वककमइ सिय असरीरी वककमइ गोयमा ओरालिय-वेउब्बिय-आहारयाई पच्च असरीरी वक्कमइ तेया कम्माइं पडुच्च ससरीरी वक्कमइ से तेणटेणं गोयमा एवं वुच्चइ सिय ससरीरी वक्कमइ सिय असरीरी वक्कमइ जीवे णं मंते गब्भंवक्कममाणे तप्पढमयाए किमाहारमाहारेइ गोयमा माउओयं पिउसुक्कं-तं तदुभयसंसिट्ठ तप्पढपयाए आहारमाहारेइ जीवे णं भंते गभगए समाणे किं आहारमाहारेइ गोयमा जं से माया नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेइ तदेकदेसेणं ओयमाहारेइं जीवस्स णं भंते गडभगयस्स समाणस्स अस्थि उच्चारे । वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा पित्ते इ वा नो इणढे समढे से केणद्वेणं गोयमा जीवेणं गब्धगए समाणे जमाराहेइ तं चिणाइ तं जहा - सोइंदियाताए [चक्खिदियत्ताए धाणिं- दियत्ताए रसिंदियत्ताए। फासिंदियत्ताए अट्ठि-अट्टिमिंज केस-मंसु-रोम-नहत्ताए से तेणद्वेणं गोयमा एवं वुच्चइ जीवस्सणं गभगवस्स समाणस्स नस्थि उच्चारे इ वा पासवणे इवा खेले इ वा सिंधाणे इ वा For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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