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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-१४, उद्देसो-१ २९३ (५९८) अणगारे णं भंते भावियप्पा घरमं असुरकुमारावासं वौतिक्कंते परमं [असुरसकुमारावासमसंपत्ते एत्थ णं अंतरा कालं करेज्जा तस्स णं भंते कसहिं गती कहिं उववाए पत्रत्ते गोयमा जे से तत्थ परिपस्सओ तल्लेसा असुकुमारावासा तहिं तस्स गती तर्हि तस्स उववाए पन्नत्ते से य तत्थ गए विराहेजा कम्मलेस्सामेब पडिपडति से य तस्थ गए नो विराहेजा तामेव लेस्सं उपसंपजित्ताणं विहाइ] एवं जाव थणियकुमारावासं जोइसियावासं एवं वेमाणियावासं जाव विहाइ नेरइयाणं भंते कहं सीहा गती कहं सीहे गतिविसए पन्नते मोयमा से जहानामए केइपरिसे तरुणे वलवं जगवं जिवाणे अप्पातंके घिरग्गहत्ये दढवाणि-पाय-पास-पिट्ठतरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिधनिभवाहू चम्मेदृग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमण्णागए लंघण-पवण-जइण-वायाम-समत्थे छए दक्खे पतढे कुसले मेहावी निउणे] निउणसिप्पो वगए आउंटियं बाहं पसारेज्जा पसारियं वा बाहं आउंटेजा विक्खिण्णं वा मुट्टि सोरेजा साहरियं वा मुढ़ि विक्खिोजा उम्मिसिय वा अच्छि निम्मिसेजा निम्मिसियं वा अच्छि उम्मिसेज्जा भवे एयासवे नो इणट्टे सपढे नेरइया णं एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विगाहेणं उववजति नेरइयाणं गोयमा तहा सीहा गती तहा सीहे गतिविसए पत्रत्ते एवं जाव वेमाणियाणं नवरंएगिदिवाणं चउसमइए विग्गहे भाणियब्बे सेसं तं चैव ।५००1-501 (५९९) नेरइया णं भंते किं अनंतरोववनगा परंपरोववनगा अनंतर-परंपर-अनुववन्नगा गोयमा नेरइया अनंतरोववन्नगा वि परंपरोववनगा वि अनंतर-परंपरअनुववनगा वि से केणद्वेणं भंते एवं बुच्चइ - नेरइय अनंतरोवस्त्रगा वि परंपरोववन्नगा वि] अनंतर-परंपर-अनुववनगा वि गोयमा जे णं नेरइया पढमसमयोक्वनगा ते णं नेरइया अनंतरोववनगा जे णं नेरइया अपढमसमयोववत्रगा ते ण नेरइया परंपरोववन्नगा जे णं नेरइया विग्गहगइसमावन्नगा ते णं नेरइया अनंतर-परंपर-अनुववनगा से तेणद्वेणं जाव अनंतर-परंपर-अनुववत्रगा वि एवं निरंतरं जाव वेमाणिया, अनंतरोववनगाणं भंते नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेति तिरिक्ख-मणुस्स-देवाउयं पकरेति गोयमा नो नेरइयाउयं पकरेंति जाब नो देवाउयं पकरेंति परंपरोववनगाणंभंते नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति गोयमा नो नेरइयाउयं पकरेंति तिरिक्खजोणियाउयं पकरोति मणुस्साउयं पि पकरेतिं नो देवाउयं पकरेति अनंतर-परंपर-अनुववनगाणं भंते नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति-पुच्छा गोयमा नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेति एवं जाव वेराणिया नवरं-पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोववनगा चत्तारि वि आउयाइं पकरेंति सेसं तं चेव नेरइया णं भंते किं अनंतरनिग्गया परंपरनिग्गया अनंतर-परंपरअनिग्गया गोयमा नेरइया अनंतरनिग्गया वि परंपरनिग्गया वि अनंतर-परंपरअनिग्गया वि से केण?ठेणं जाव अनंतर-परंपर-अनिग्गया वि गोयमा जे णं नेरइया पढमसमयनिग्गया तेणं नेरइया अनंतरनिगया जेणं नैरइया अपढमसमयनिग्गया तेणं नेरइया परंपरनिग्गया जेणं नेरइया विग्गहगतिसमावन्नगा ते णं नेरइया अनंतर-परंपर-अनिग्गया से तेणद्वेणं गोयमा जाव अनंतर-परंपर-अनिग्गया वि एवं जाव वेमाणिया अनंतरनिग्गया णं भंते नेरइया कि नेरइयाउय पकरेति जाव देवाउयं पकरेति गोयमा नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेति परंपरनिग्गया णं भंते नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति-पुच्छा गोयमा नेरइयाउयं पि पकरेति जाव देवाउवं पिपकरेति अनंतरं-परंपर-अनिग्गया गंभंते नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेति For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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