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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०७) सकहं वक्कलं ठाणं सिजाभंडं कमंडलुं दंडदारूं तप्पाणं अहे तई समादहे उवसंपज्जित्ताणं विहरइ तए णं से सिवे रायरिसी पढमछड़क्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पचोरूहइ पचोरुहित्ता बागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता किढण - संकाइयगं गिव्हइ गिव्हित्ता पुरस्थिमं दिसं पोक्खेइ पुरत्थिमए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं जाणि य तत्य कंदाणि य मूलाणिय तयाणि य पत्ताणि य पुष्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ त्ति कट्टु पुरत्थिमं दिसं पसरइ पसरित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य जावा हरियाणि य ताइं गेहइ गेण्हित्ता किढिण-संकाइयगं भरेइ भरेत्ता दव् य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गिण्हइ गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता किढिण-संकाइयगं ठवेइ ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ वड्ढेत्ता उवलेवण समजणं करेइ करेत्ता दमकलसाहत्यगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता गंगं महानदिं ओगाहेइ ओगाहेत्ता जल मज्झणं करेइ करेत्ता जलकीडं करेइ करेत्ता जलाभिसेयं करेइ करेत्ता आवंते चोक्खे परमसुइभूए देवय-पिति कयक दब्भकलसाहत्थगए गंगाओ महानदीओ पच्चत्तर पनुत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहिय वालुयाएहि य वेदिं रएति रएता सरएणं अरणि महेइ महेत्ता अग्गिं पाडेइ पाडेता अग्ग संधुक्के संधुक्केत्ता समिहाकट्ठाई पक्खिवइ पक्खिवित्ता अग्गि उज्जाले उज्जालेत्ता अग्गिस्स दाहिणे पासे सत्तंगाई समादहे, (तं जहा ) - ४१६-१।-417-1 भगवई - ११ /-/ ९/५०६ 119011-1 महुणाय पण य तंदुलेहि य अग्गिं हुणइ हुणित्ता चरूं साहेइ साहेत्ता बलिवइस्सदेवं करेइ करेत्ता अतिहिपूयं करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति |४१६/- 417 (५०८) तए णं से सिवे रायरिसी दोघं छक्खमणं उवसंपचित्ताणं विहरइ तए णं से सिवे रायरिसी दोघे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पत्रोरूहड़ पचोसहिता [वागलयत्थनियत्थे जेणेव सए उड़ए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता किंढिण-संकाइयगं गिव्हइ गिव्हित्ता ] दाहिणं दिसं पोक्खेइ दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थिय अभिरक्खड सिवं रायरिसि सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ तए णं से सिवे रायारिसी तच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरइ तए णं से सिवे रायरिसि त छट्ठक्खमणपारणगंसि सेसं तं चैव नवरं पद्यत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं सेसं तं चेव जाय तओ पच्छा अप्पा आहारमाहारेइ तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्खमणं उवसंपत्रित्ताणं विहरइ तए णं से सिवे रायरिसी चउत्ये छुट्टक्खमणं [पारणगंसि आयावणभूमीओ पचोरूहइ पञ्चरूहित्ता यागलवत्यनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता किटिण-संकाइयगं गिन्हइ गिन्हित्ता) उत्तरदिसं पोक्खेइ उत्तराए दिसाए बेसमणे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं सेसं तं चैव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छछट्टेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं [तयोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए ] आयावैमाणस्स पगइमद्दयाए जाव विणीययाए अण्णया कयाइ तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स विटमंगे नामं नाणे For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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