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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - १० /-/ २/४७७ इसे केणणं भंते एवं बुधइ संवुडस्स णं जाव संपराइया किरिया कज्जइ गोयमा जस्स णं कोहामाण- माया लोभा वोच्छिष्णा भवंति तस्स णं इरियावहिया किरिया कञ्जइ जस्स णं कोह-माणामाया-लोभा अवोच्छिणा भवंति तस्स णं संपराइयकिरिया कजइ अहासुत्तं रीयमाणस्स इरियाचहिया किरिया कइ उत्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ । से णं उस्सुतमेव रीयति से तेणट्टेणं जाव संपराइया किरिया कन्नइ संवुडस्स णं भंते अणगारम्स अवीयीपंथे ठिचा पुरओ रुवाई निज्झायमाणस्स जाव तस्स णं भंते किं इरियावहिया किरिया कञ्चइ- पुच्छा, गोयमा संवुडस्स नं अणगारस्स अवीयपंथे ठिच्चा जाव तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ नो संपराइया किरिया कजइ सेकेणणं भंते एवं बुधइ- संवुडस्स णं जाव इरियावहिया किरियाकजइ नो संपराइया किरिया कज्जइ [गोयमा जस्स णं कोह-पाण- माया-लोभा वोच्छिण्णा भवंति तस्स णं इरियावहिया किरिया कजइ जस्स णं कोह- माण- माया लोभा अवोच्छिण्णा भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कजइ अहात्तं रीयमाणस्स इरियावहिया किरिया कन्जइ उस्तुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ] से णं अहासुत्तमेव रीयति से तेणड्डेणं जाव नो संपराइया किरिया कज्जइ । ३९५/396 (४७८) कतिविहा णं भंते जोणी पत्रत्ता गोयमा तिविहा जोणी पत्रत्ता तं जहा- सीया उरिणा सीतोसिणा एवं जोणीपदं निरवसेसं भाणियव्वं ॥ ३९६/-397 ( ४७९) कतिविहा णं भंते बेयणा पत्रत्ता गोयमा तिविहा वेयणा पत्रत्ता तं जहा-सीया उसिणा सीओसिणा एवं वेयणापदं भाणियव्वं जाव-: • नेरइयाणं भंते किं दुक्खं वेयणं वेदेति सुहं वेयणं वेदेति अदुक्खमसुहं वेवणं वेदेति गोचमा दुक्खं पि वेवणं वेदेति सुहं पि वेयणं वेदेति अदुक्खमसुहं पिवेयणं वेदेति । ३९७१-398 (४८०) मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं बोसडकाए चियत्तदेहे जे केइ परीसहोवसग्गा उपयंति तं जहा दिव्वा वा माणसु वा तिरिक्खजोमिया वा ते उप्पत्रे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ एव भासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणियव्वा जहा दसहि जाव आराहिया भवइ । ३९८१ - 999 (४८१) भिक्खू य अण्णयरं अकिद्वाणं पडिसेविता से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ अयि तस्स आराहणा भिक्खू य अण्णयरं अकिच्चट्टाइणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं मवइ- पच्छा वि णं अहं चरिमकालसमंयसि एयस्स ठाणस्स आलोएस्सामि [पडिक्कमिस्सामि निंदिस्सामि गरिहिस्सामि विउट्टिस्सामि विसोहिस्सामि अकरणयाए अब्भुट्ठिस्सामि अहारियं पायाच्छितं तयोकम्पं] पडिवनिस्सामि से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयं पडिक्कंते कालं कोइ नत्थि तस्स आराहणा से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कते कालं कोइ अत्थि तस्स आराहणा भिक्खू य अण्णयरं अकिञ्चठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ - जइ ताव समणोवासगा वि कालमासे कालं किवा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति किमंग पुण अहं अणपन्नियदेवत्तणंपि नो लभिस्सामि त्ति कटु सेणं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइ नत्थि तस्स आरहणा से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ अत्थि तस्स आरहणा सेवं भंते सेवं भंते ति । ३९९ 400 • इसमे सते बीओ उद्देस समतो● For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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