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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपं सतं - उद्देसो-३३ देवकिब्यिसिया परिवसंति गोयमा उप्पिं सोहमीसाणाणं कपाणं हिढेि सणंकुमार-माहिदेसु-कप्पेस एत्थ णं तिसागरोवमहिइया देवकिचिसिया परिवसंति कहिं गं भंते तेरससागरोवमद्विइया देवकिञ्चिसिया परिवसंति गोचमा उप्पिं बंभलोगस्स कपस्स हिडिं लंतएकप्पे एत्यणं तेरससागरो वमट्ठियाइ देवकिञ्चिसिया देवा परिवसंति देवकिब्बिसिया णं भंते केसु कम्पादाणेसु देयकिञ्चिसियताए उबवतारो भवंति गोचमा जे इमे जीवा आयरियपडिणीया उयज्झायपडिणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया संघपडिणीया आयरिय-उवजायणं अयसकारा अवण्णकारा अकितिकारा बर्हि असब्भावुभावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसेहिं य अप्पाणं परं च तदुभयं च दुग्गाहेमाणा दुप्पाएमाणा यहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयएडिक्कंता कालमासे कालं किच्छा अण्णयरेसु देवकिब्विसिएसु देवकिनिसियत्ताए उववत्तारो भवंति तं जहा-तिपलविओवपढितिएम वा तिसागरोवमट्टितिएसु वा तेरससागरोवमद्वितिएम वा देवक्रिबिसिया णं भंते ताओ देवलोगाओ आउखएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं वयं वइत्ता कहिं गच्छंति कहिं उबवनंति गोयमा जाव चत्तार पंच नेरइय-तिरिक्खजोणियमणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिझंति बुझंति-[मुखंति परिनिव्यायंति सचदुक्खाणं] अंतं करेति अत्थेगतिया अणादीयं अणवदाग दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरिपट्टति जमाली गं भंते अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे तुच्छाहारे अरसजीवी विसजीवीअंतजीवी पंतजीवी लूहजीवी तुच्छजीवी उबसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी, हंता गोयमा जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी जति णं भंते जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी काहाणं भंते जपाली अणगारे कालमासे कालं किडा लंतए कप्पे तास सागरीवमद्वितिएसु देवक्रिबिसिएसु देवेसु देवकिव्यिसियत्ताए उवयन्ने गोयमा जमाली णं अणगारे आयरियपडिणीए उवज्झाय- पहिपीए आयरिय उवज्झावाणं अयसकारए अवण्णकारए जाब युप्पाएमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइ-यपडिकंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे उवयत्रे ३८८1-389 (४७०) जमाली णं भंते देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवखएणं ठिइक्खएणं अनंतरं वयं चइता कहिं गच्छिहिति] कहिं उववजिहिति गोयमा चत्तारि पंच तिरिक्खजोणियमणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति [बुझिहिति मुछिहिति परिनिवाहिति सम्बदुक्खाणं| अंतं काहिति सेवं भंते सेवं भंते त्ति।३८९। 990 नवमे सते तेतीसइमो उद्देसो समत्तो. - चो त्ती स इ मो-उदे सो:(४०१) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी-पुरिसे णं भंते पुरिसं हणमाणं किं पुरिसं हणइ नोपुरिसे हणइ गोयमा पुरिसं पि हणइ नोपुरिसे वि हणइ से केणद्वेणं मंते एवं युच्चइ-पुरिसं पि हणइ नोपुरिसे वि हणइ गोयमा तस्स णं एवं भवइ-एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि से णं एगं पुरिसं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ से तेणटेणं गोयमा एवं वुचइ-पुरिसं पि हणइ नोपुरिसे वि हणइ पुरिसे णं भंते आसं हणमाणे किं आसं हणइ नोआसे हणइ गोयमा आप्तं पि हणइ नोआसे वि हणइ से केणद्वेणं अट्ठो तहेव एवं हत्यिं सीहं वयं जाव चिल्ललगं पुरिसे णं भंते For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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