SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ भगवई - ९//३३/४६७ PARA सासए लोए जमालि असासए लोए जमाली सासए जीवे जमाली असासए जीवे जमाली तए णं से जमाली अणगारे भगवया मोयमेणं एवं ते समाणे संकिए कंखिए[वितिगिच्छिए भेदसमावण्णे] कलुसमभावण्णे जाए या वि होत्या नो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचि विपमोक्खमाइक्खित्तए तुसिणीए संचिट्ठइ ___ जमालीति समणे भगवं पहावीरे जमालिं अणगारं एवं वयासी-अस्थिणं जमाली ममं बहदे अंतेवाती सपणा निगंथा छउमत्था जे तं पभू एयं वागरणं वागरितए जहा णं अहं नो चेव णं एतप्पगारंभासं भासित्तए जहाणं तुम, सासए लोए जमाली जन कयाइ नासि न कयाइ न भवइन कयाइ न भविस्सइ-भुविं च भवइ य भविस्सइ य -धुवे नितिए सासए अक्खए अब्बए अवट्ठिए निच्चे असासए लोए जमाली जं ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ सासए जीवे जमाली जं न कयाइ नाप्ति जाव निच्चे असासए जीवे जमाली जपणं नेरइए भविता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणस्से भवइ मणुस्से भवित्ता देवे भवइ तए णं से जमाली अणगारो समणस्स भगवओ महावीरस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एतमद्वं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ एतमटुं असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोघं पि समणस्स भगवओ पहावीरस्स अंतियाओ आयाए अवकमइ अवकमित्ता बहूहिं असदभावुभवुभावणाहिं मिच्छताभिणीवेसेहि य अप्पाण व परं च तदुभयं च दुग्गाहेमाणे दुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसेता तीसं भताई अणसणाए छेदेइछेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिककंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितीएसु देवकिबिसिएसु देवेसु देवकिञ्चिसियत्तए उववत्रे ३८६।-387 (४६८) तए ण भगवं गोयमे जमालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव सपणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नापं अणगारे से णं भंते जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहि उववन्ने, गोयमादी समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नाम अणगारे से णं तदा ममं एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स एवं पण्णवेमाणस्स एवंपरवेमाणस्स एतमटुं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ एतमट्ठ असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोघं पि गर्म अंतियाओ आयाए अबक्कपइ अवक्कमिता बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिँ [मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परंव तदुभयं च बुग्गहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयडिक्कते कालमासे कालं किन्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठिती एसु देवकिचिसिएसु देवेसु) देवकिविसियत्ताए पनत्ता।३८७।-388 (४६९) कतिविहा णं भंते देवकिबिसिया पन्नत्ता गोयमा तिविहा देवकिब्धिसिया पत्रवत्ता तं जहा-तिपलिओवमद्विइया तिसागरोवमट्टिइया तेरससागरोवमट्ठिइया कहिं णं भंते तिपलिओक्मट्टिइया देवकिदिवसिया परिवसंति गोयमा उप्पिं जोइसियाणं हिटिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु एत्य णं तिपलिओवमविइया देवकिविसिया परियसंति कहिं णं मंते तिसागरोवमद्विइया For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy