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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ भगवई - ९/-३३६५ पवइ अप्पभारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ एस पे निस्थारिए समाणे पच्छा पुरा यहियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियताए पविस्सइ एवामेव देवाणुप्पिया मज्झ वि आया एगे मंडे इवे कंते पिए मणुण्णे पणामे थेने वेस्सासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे माणं सीयं माणं उण्डं मा णं खुहा माणं पिवासा मा णं चोरा मा णं बाला मा णं ईसा मा णं मसया मा णं वाइय-पित्तिय-सेभिय-सत्रिवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्ट एस मे नित्यारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खपाए नीसेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया सयमेव पन्चावियं सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहावियं सयमेवं सिक्खाविय सयमेव आयार-गोयरं विणय-वेणइय-चरणकरण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं तए णं समणे मग महावीरे जमालि खतियकुमारं पंचहिं पुरिससएहिं सद्धिं सयमेव पव्यावेइ जाव सामाइयमाइयाइएककारस अंगाई अहिज्जइ अहिनित्ता बहूहि चउत्थ-छट्ठम-दिसम-दुवालसेहिं] मासद्ध-मासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अपाणं भावमाणे विहरइ ३८४-385 (४६६) तएणं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागछित्ता सपणं भगवं पहावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवंक्यासी-इच्छामि णं भंते तुटमेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरित्तए तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस अणगारस्स एयपटुंनो आढाइ नो परिजाणइ तुसिणीए संचिट्ठा तए णं से जमाली अणगारे सपणं भागवं महावीरं दोच्चं पि तन्वं पि एवं वयासी इच्छामि णं मंते तुब्मेहिं अव्मणुण्णाए समाणे पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहीत्तए तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोच्चं पि तच्चं पि एयमद्वं नो आढाइ नो परिजाणइ तुसिणीए संचिट्ठइ तए णं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसिता सपणस्स भगवओ पहावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिखपइ पडिनिक्खमित्ता पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं बहिया जणवय-विहारं विहांइतेणं कालेणं । तेणं सपएणं सावत्थी नाम नयरी होत्या-वण्णओ कोट्ठए चेइए-वण्णओ जाव रणसंडस्स तेणं कालेणं तेणं सपएणं चंपा नाम नयरी होत्या-वण्णओ पुण्णभद्दे चेइए-चण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ तए णं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ पंचहि अणगारसएहि सद्धिं संपरिखुडे पुब्बाणुपुचि चरमाणे गामाणुग्गामं दुइज्जमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ ओगिहिता संजमेणं तयसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाइ पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइजमाणे] सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तएणं तस्स जमालिस अणगारस्स तेहिं अरसेहिं य विरसेहिंय अंतेहि य पंतेहि य लहेहि य तुच्छेहि य कालाइककंतेहि य पमाणाइककंतेहि य पाणभोयणेहि अण्णया कयाइ सरीरगंसि विउले रोगातके पाउड्भूए-उजले विउले पगाढे कक्कसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे तिव्ये दुरहियासे पित्तज्जरपरिगतसरीरे दाहवक्कंतिए या विविहरइ तए णं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे निग्गंथे सदावेइ सद्दावेत्ता एवं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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