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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवमं सतं - उदेसो-३३ २०३ दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूते उपिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगपत्याएहिं बत्तीसतिवद्धेहिं नाडएहि वरतरूणीसंफ्उत्तेहिं उवनचिजमाणे-उवनच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उबगिजमाणे उवलालिजमाणे-उवलालिज्जमाणे पाउस यासारत्त-सरद-हेमंत-वसंत-पिम्हपझंते छप्पि उऊ जहाविमवेणं माणेमाणे कालं गालेमाणे इढे सद्द-फरिस-रस रूवं-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्मवमाणे विहरइ तए णं खत्तिवकुण्डग्गामे नयरे सिंधाडग-तिक चउक्क चच्चर-चउम्मुह-महा पहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणुम्मी इ वा जणु कलिया इ वा जणसण्णिवाए इ वा बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासई एवं पण्णवेइ एवं परवेइ एवं खलु देवाणुप्पिया समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वष्णू सबदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं [ओग्गहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भायेमाणे] विहरइ तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे खत्तियकुण्डागामं नयरं मन्झमज्झेणं निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छति एवं जहाओवयाइए जावतिविहाए पज्जुवासणयाए पञ्जुवासंति तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स तं महयाजणसई वा जाव जणसनिवार्य वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अवमेयारूवे अज्झथिए [वितिए पत्यिए मणोगए संकषे] समुप्पज्जित्था-किण्णं अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा खंदमेहे इ वा मुगुंदमहे इवा नाममहे इवा जखमहे इ वा भूयमहे इ वा कूवमहे इ वा तडागमहे इ वा नईमहे इवा दहमहे इ वा पव्ययमहे इवा रूक्खमहे इ वा चेइयमहे इ वा थूभमहे इ वा जण्णं एते बहवे उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा नाया कोरव्वा खतिया खत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता [जोहा पसत्यारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माइंबिय-कोईविय-इव्म-सेटि-सेणावई-सत्यवाहप्पभितयोण्हाया कयबलिकप्माजहा ओववाइए जाव खत्तियकुंडग्गामे नयरे मझं-मज्झेणं निग्गछंति- एवं संपेहेइ संपेहेता कंचुइ-पुरिसं सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वदासी-किण्णं देवाणुप्पिया अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गछति तए णं से कंचुइ-पुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हडतुडे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल जाव जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ बद्धावेत्ता एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति एवं खलु देवाणुप्पिया अजसमणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सवण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नयरस्स बहिया वहुसालए चेइए अहापडिलवं ओग्गहं जावविहरइ तए णं एते बहवे उग्गा भोगा जाव निगच्छंति तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइ-पुरिसस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्मं हतुढे कोथुवियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पापेव भो देवाणुप्पिया चाउग्घंटं आसरह जुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह तए णं ते कोडुबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा [चाउग्धंट आसरहं जुत्तामेव उवद्वेवेति उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं] पञ्चप्पिणंति तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागाच्छित्ता पहाए कयबलिकम्मे जाव चंदणुक्खित्तगायसरीरे सव्वालंकारविभूसिए मज्झणघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्धंटे आसरहे तेणेव For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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