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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ भगवई - ९/-/ ३३ / ४६२ - वदासी- एवमेयं भंते तहमेयं भंते । अवितहमेयं पंते असंदिद्धमेयं मंते इच्छिमेयं मंते पडिच्छियमेयं अंते इच्छिय-पडिच्छियमेयं मंते] से जहेपं तुम्भे वदह त्ति कट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसिभागं अवक्कामति अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ करेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं त्तिक्खुत्ती आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेता बंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासीआलित्ते णं भंते लोए पलित्ते णं भंते लोए आलित्त- पलित्ते णं भंते लोए जराए मरणेण य से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मल्लए तं गाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ एवामेव देवाणुप्पिया मज्झ वि आया एगे भंडे ते पिए मणुणे मणामे थेजे वेस्सासिए सम्मए बहुगए अणुमए भंडकरंडगसमाणे मा गं सीमाणं उन्हं मागं खुहा मा गं पिवासा मा गं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा गं मसया मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सन्निवाइय विविहा रोगायका परीसहोवसग्गा फुसंतु ति कट्टु एस मे नित्यारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ तं इच्छामि देवापिया यमेव पव्वावियं सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खावियं सयमेव आधार गोयरं विजय-वेणइय-चरण-करण जाया- मायावत्तियं धम्पमाइक्कियं तए णं समणे भगवं महावीरे उसमदत्तं माहणं सयमेव पव्वावेइ सय मेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खावेइ सयमेव आयार-गोयरं विणय-येणइय चरण-करण जायामायावत्तियं धम्मभाइक्खइ- एवं देवाणुपिया गंतव्वं एवं चिट्ठियव्वं एवं नीसीइयव्वं एवं तुयट्टियव्वें एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं एवं उट्ठाय - उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं अस्सि च णं अट्ठे मो किंचि वि माइयव्वं तए गं से उसमदते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म संपडिवाई जाय सामाइयमाइयाई एकेकारस अंगाई अहिज्झइ अहिजित्ता वहूहिं चउत्य-छट्ठट्ठमदसम - दुवालसेहिं मासद्धमास- खमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ झूसेत्ता सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदेइ छेदेत्ता जस्सद्वाए कीरति नागभावे जाव तम आराहेइ आराहेत्ता जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तए णं सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धप्पं सोना निसम्मंहतुट्ठासमणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइनमंसइ वंदित्ता नंसित्ता एवं बयासी - एवमेयं मंते तहमेयं मंते एवं जहा उसभदत्तो तहेव जाव धम्ममा इक्खियं तए गं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणिं सयमेव पव्वावेइ पव्वावेत्ता सयमेव अज्जचंदणाए जाए सीसिणित्ताए दलयइ तए गं सा अज्जचंदणा अज्जा देवाणंदं माहणि सयमेव मुंडावेति सयमेच सेहावेति एवं जहेव उसभदत्तो तहेव अज्जचंदणाए अजाए इमं एयारूवं धम्मियं उयदेसं सम्मं संपडिवज्जइ तमागाए तह गच्छइ जाव संजमेणं संजमति तए णं सा देवानंदा अज्जा अज्जचंदणाए अजाए अंतियं सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ जाव सव्वदुक्खप्पहीणा । ३८११-382 (४६३) तस्स णं माहण कुंडग्गामस्स नगरस्स पचत्विमे णं एत्य णं खत्तियकुंडग्गामे नामं नयरे होता- यण्णओ तत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नयरे जमाली नामं खत्तियकुमारे परिवसइ अड्ढे For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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