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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० भमबई - 41-190४३१ सव्वदुक्खाणं अंतं करेति गोयमा अत्यंगतिए तच्चेणं भवग्गहणेणं सिझतिजाव सन्चदुक्खाणं अंतं करेति सत्तट्ट भवग्गहणाइंपुण नाइक्कमइ।३५३/-355 (४३३) कतिविहे णं मंते पोग्गलपरिणामे पत्रत्ते गोयमा पंचविहे पोग्गलपरिणामे पन्नते तं जहा-वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे संठाणपरिणामे वण्णपरिणामे णं पते कतिविहे पनते गोयमा पंवविहे पन्नतेतंजहा-कालवण्णपरिणामेजाव सुक्किलवण्णपरिणामे एवं एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे रसपरिणामे पंचविहे फासपरिणामे अट्ठविहे संठणपरिणामे णं मंते कतिविहे पत्रत्ते गोयमा पंचविहे पत्रत्ते तं जहा-परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आयतसंठाणपरिणामे।३५४।-358. (४३३) एगे मंते पोग्गलस्थिकायपदेसे किं दव्वं दव्यदेसे दव्वाइं दव्वदेसा उदाहु दवं च दव्यदेसे य उदाहु दव्वं च दबदेसा य उदाहुदव्वाइंच दव्वदेसे य उदाहुंदव्याइं चदव्यदेसाय गोयमा सिय दब्वं सिय दव्वदेसे नो दव्वाइंनो दव्वदेसा नो दव्वं च दबदेसे य नोदव्वं च दबदेसा य नो दच्चाईच दव्वदेसे य नो दब्वाइं च दबदेसाय, दो मंते पोग्गलत्यिकायपदेसा किं दव्यं दचदेसेपुच्छा गोयमा सिय दिव्बं सिय दव्यदेसे सिय दब्वाइं सिय दव्वदेसा सिय दव्वं च दब्बदेसे य सेसा पडिसेहेयव्या तिण्णि मते पोग्गलत्थिकायपदेसा किं दव्यं दबदेसे-पुच्छा गोयमा सिय दब्बं सिय दबदेसे एवं सत्तभंगा भाणियब्वाजावसिय दव्वाइंच दव्यदेसे यनो दब्वाइंच दबदेसा य, चत्तारि मंते पोग्गलस्थिकायपदेसाकिंद-पुच्छा गोयमा सिय दव्वं सिय दव्वदेसे अट्ट वि भंगा भाणियव्या जाव सिय दव्याइं च दवादेसा यजहा चत्तारि भणिया एवं पंच छ सुत्तजाव असंखेना, अनंता मंते पोग्गलत्थिकायपदेसा किं दब्बं एवं चेवजावसिय दव्वाइंच दव्वदेसाय।३५५१-337 (४३४) केवतिया णं मंते लोयागासपदेसा पन्नत्ता गोयमा असंखेज्जा लोयागासपदेसा पन्नता एगमेगस्सणं मंते जीवस्स केवइया जीवपदेसा पत्रत्ता गोयमा जावतिया लोयागासपदेसा एगमेगस्सपंजीवस्स एवतिया जीवपदेसापत्रत्ता।३५६।-358 (४३५) कति णं भंते कम्पपडीमो पन्नत्ताओ गोयमा अट्ठ कम्मपगडीओ पत्रत्तओ तं जहानाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, नेरइयाणं भंते कति कम्पपगडीओ पन्नत्ताओ गोयमा अट्ट एवं सव्यजीवाणं अट्ठ कम्पपगडीओ ठावेयव्वाओ जाय येमाणियाणं नाणवरणिजस्स णं पते कम्पस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पत्रत्ता गोयमा अनंता अविभागपलिच्छेदा पनत्ता नेरइयाणं मंते नाणावरणिनस्स कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पत्रत्ता गोयमा अनंता अविभागपलिच्छेदा पत्रत्ता एवं सव्यजीवाणं जाव येमाणियाणं पुच्छा गोयमा अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता एवं जहा नाणावरणिजस्स अविभागपलिच्छेदा मणिया तहा अgण्ह वि कम्मपगडीणं भामियव्वा जाव वेमाणियाणं अंतराइयस्स एगमेगस्स णं मंते जीवस्स एगमेगे जीवपदेसे नाणावरणिजस्स कम्मस्स केयतिएहिं अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढिय-परिवेढिए गोयमा सिय आवेढिय-परिवेढिए सिय नो आवेदिय परिवेढिएजइआवेढिय-परिवेदिए नियमा, अनंतेहिं एगमेगस्सणं मंते नेरइयस्स एगमेगे जीवपदेसे नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिपहिं अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढिय-परिवेदिए गोयमा नियमं अनंतेहि जहा नेरइयस्स एवं जाव वेमाणियस्स नवरं-मणूसस्स जहा जीयस्स, एगमेगासणं भंते जीवस्स एगपेगे जीवपदेसे दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिएहिं अविभागपलिच्छेदेहि आयेढिय-परिवेढिए गोयमा नियमं अनंतेहिं जहा जीवस्स एवं जाय वेमाणियस्स नवरं-मणूसस्स For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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