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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ भगवई - 41-1५/१०२ करेंतं नाणुजाणइ मणसा वयसा अहवा करेंतं नाणुजाणइ मणसा कायसा अहवा करेंत नाणुजाणइ वयता कायसा एगविंह एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ मणसा अहवा न करेइ वयसा अहवा न करेइ कायसा अहवा न कारयेइ मणसा अहवा न कारवेइ वयसा अहवा न कारवेइ कायसा अहवा करेंतं नाणुजाणइ मणप्ता अहवा करेंतं नाणुजाणइ वयसा अहया करेंतं नाणुजाणइ कायसा पडुप्पत्रं संवरेमाणे किं तिविहं तिविहेणं संवरेइ एवं जहा पडिक्कममाणेणं एगूणपन्नं भंगा भणिया एवं संवरमाणेण वि एगणपन्नं भंगा भाणियव्या अणागयं पञ्चक्खमाणे किं तिविहं तिविहेणं पचक्याइ एवं एते चेव भंगा एगूणपत्रं पाणियज्या जाव अहवा करेंतं नाणुजाणइ कायप्ता समणोवासगस्स णं भंते पुवामेव धूलए मुसावाए अपचक्खाए मवइ से णं भंते पच्छा पद्याइक्खमाणे किं करेइ एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं मणियंतहा मुसावायस्स वि माणियव्यं एवं अदित्रादाणस्स वि एवं थूलगस्स वि मेहुणस्स थूलगस्स वि परिगहस्स जाव अहवा कोतं नाणुजाणइ कायसा एते खलु एरिसगा समणोवासगा भवंति नो खलु एरिसगा आजीविओवासगा भवंति।३२८१-329 (४०३) आजीवियसमयस्स णं अयमढे-अक्खीणपडिभोइणो सब्वे सत्ता से हंता छेत्ता भेता लुपित्ता विलुपिता उद्दवइत्ता आहारमाहारेति तत्य खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति तं जहा-ताले तालपलंबे उब्धिहे संविहे अवविहे उदए नामुदए नम्मुदए अणुवालए संखवालए अयंपुले कायरए-इच्चेते दुवालस आजीविओवासगा अरहंतदेवतागा अम्मापिउसुस्सूसगा पंचफलपडि - कंता तं जहा-उंबरेहिं बडेहिं बोरेहिं सतरेहिं पिलक्खूहिं पलंडुल्हसुणकंद मूलविवजगा अणिलंछिएहि अणक्कभित्रेहिं गोणेहिं तसपाणविवजिएहिं छेतेहिं वितिं कषेमाणा विहरंति एए वि ताव एवं इच्छंति किमंग पुण जे इसे समणोवासगा भवंति जेसिं नो कप्पंति इमाइ पत्रास कम्पादाणाई सयं कोत्तए दा कारवेत्तए वा करेंतं वा अत्रं सपणुजाणेत्तए तं जहा इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिजे लक्खवाणिजे केसवाणिजे रसवाणिजे विसवाणिझे जंतपीलणकम्मे निलंछणकम्मे दवगिदावणया सर-दह-तलागपरिसोणया असतीपोलसणया इछते समणोवासगा सुक्का सुक्काभिजातीया भवित्ता कालमासे कालं किया अण्णयरेसु देवलोएसुदेवताए उववत्तारोपवंति।३२९।-330 (101) कतिविहा णं मंते देवलोगा पन्नता गोयमा चउब्बिहा देवलोगा पनत्ता तं जहापवणणवासी वाणमंतराजोइसिया वेमाणिया सेवं भंते सेवं भंते ति।३३०1-391 .अहमे तते पंचपो उद्देसो सपतो. ___-छटो-उ हे सो :(४०५) समणोबासगस्सणं भंतेतहारूवं समणं या माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असण पाणखाइम-साइमेणं पडिलामाणस्स किं कजइ गोयमा एगंतसो से निजरा कज्जइ नत्यि य से पावे कम्मे कजइ समणोवासगस्सणं भंते तहास्वं समणंवा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण-पाण. खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणस्स किं कज्जइ गोयमा बहुतरिया से निजरा कजइ अप्पतराए से पावे कम्मे कजइ संमणोवासगस्स णं भंते तहावं असंजय-अविरय-पडिहय-पञ्चक्खायपावकम्म फासुएण वा अफासुएण वा एसणिशेणवा अणेसणिोण या असणपाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणस्स किंकजइगोयमाएगंतसो से पावेकम्मे कज्जइनत्यि से काइनिज्जरा कज्जइ।३३१1-332 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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