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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवाई - ८/-/२/३९५ केवलनाणस्स णं भंते केवनिए विसए पत्रत्ते गोयमा से समासओ चडव्विहे पन्नत्ते तं जहादव्यओ खेत्तओ कालओ भावओ दव्यओ णं केवनाणी सव्वदव्वाई जाणइ-पासइ [खेत्तओ णं केवलनाणी सव्वं खेत्तं जाणइ-पास कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ-पासइ भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ-पासइ] मइ अण्णाणस्स णं भंते केवतिए विसए पत्ते गोयमा से समासओ चउव्विहे पत्ते तं जहा दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ दव्वओ णं मइ अण्णाणी म अण्णाणपरिगयाई दव्वाई जाणइ-पासइ [ खेतओ णं मइअण्णाणी मइअण्णाणपरिगयं खेत्तं जाणइ-पास कालओ णं मइअण्णाणी मइअण्णाणपरिगयं कालं जाणइ-पासइ] भावओ णं मइ अण्णाणी मइ अण्णाणपरिगए भावे जाणइ-पासइ सुयअन्नाणस्स णं भंते केवतिए विसए पत्रत्ते गोयमा से समासओ चउव्विहे पत्रते तं जहा दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ दव्यओ णं सुय अण्णाणी सुयअण्णाणपरिगयाई दव्वाइं आघवेइ, पण्णवेइ परूवेइ [ खेत्तओ णं सुयअण्णाणीपरिगयं खेत्तं आघवे पण्णवेइ परूवेइ [कालओ णं सुयअण्णाणी सुयअण्णाणपरिगयं कालं आघवेइ पण्णवेइ परूवेइ] भादओ णं सुयअण्णाणी सुय अण्णाणपरिगए मावे आघवेइ पण्णवेइ परूवेइ विभंगनाणस्स णं भंते केवतिए विसए पश्नत्ते गोयमा से समासओ चउविहे पत्रत्ते तं जहादव्यओ खेत्तओ कालओ भावओ दव्वओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयाइं दव्वाइं जाणइपासइ [खेत्तओ णं विभगनाणी विभगनाणपरिगयं खेत्तं जाणइ-पासइ कालओ णं विभंगनाणी विभंगना परिगयं कालं जाणइ - पासइ] भावओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए मावे जाणइपासइ 1३२२|-322 (३९६) नाणी णं भंते नाणी ति कालओ केयचिरं होइ गोयमा नाणी दुविहे पन्नत्ते तं जहासादीए वा अपज्जयसिए सादीए वा सपज्जवसिए तत्य णं जे से सादीए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई सातिरेगाई आभिणिबोहियनाणी णं मंते आभिणिबोहिय [नाणी ति कालो केवच्चिरं होइ गोयमा एवं चेव, एवं सुयनाणी वि, ओहिनाणी वि एवं चेव नवई - जहणं एक्कं समयं मणपजवनाणी णं भंते मणपजवनाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ गोमा जहणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं केवलनाणी णं भंते केवलनाणी ति कालओ केवधिरं होइ गोयमा सादीए अपज्जवसिए, अण्णाणी मइअण्णाणी सुय अण्णाणी णं भंते पुच्छा गोयमा अण्णाणी मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य तिविहे पत्रत्ते तं जहा- अणादीए वा अपजवसिए अणादीए वा सपज्जवसिए सादीए वा सपज्जवसिए तत्थ णं जे से सादीए सपञ्जवसिए से जहणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं अनंता ओसप्पिणी उस्सप्पिणीओ कालओ खेत्तओ अबड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं विभंगनाणी णं भंते पुच्छा गोयमा जहग्येणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तेत्तीस सागरीवभाई देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियाई आभिणिबोहियनाणिस्स णं भंते अंतरं कालओ केवचिरं होइ गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवढं पोग्गलपरियट्ट देणं सुयनाणि ओहिनाणि-मणपज्जवनाणीणं एवं चेव केवलनाणिस्स पुच्छा गोयमा नत्थि अंतरं मइअण्णाणिस्स सुयअण्णाणिस्स य पुच्छा गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई साइरेगाई विभंगनाणिस्स पुच्छा गोयमा जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो एतेसि णं भंते जीवाणं आभिणिबोहियनाणीणं सुयनाणीणं ओहिनाणीणं मणपज्जवनाणीणं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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