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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सनम सतं - उदेतो-८ १३७ सीयं उसिणं खुहं पिवासं कंडुपरज्झंजरंदाहं भयं सोग।२९५/-295 (३६२) से नूणं मंते हत्यिस्स य कुंथूस्स यसमा चेवअपञ्चक्खाणकिरिया कजइहंतागोयमा हत्यिस्स य कंथुस्स य समा चेव अपचक्खाणकिरिया कज्जइ से केणतुणं भंते एवं वुच्चइ-हथिस्सय कंयुस्स य समा चेव अपचखाणकिरिया कजइ गोयमा अविरतिं पडुछ से तेणद्वेणं (गोयमा एवं वुच्चइ-हत्यिस्सय कुंथूस्स य समाचेव अपञ्चक्खाणकिरिया काइ।२९६-296 (३७०) अहाकम्म गंभंते भुंजमाणे किं बंधइ किं पकोइ किंचिणाइ किं उवचिणाइ [गोयमा अहाकम्मं णं मुंजमाणे आउयवजाओ सत्तं कम्मष्पगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइजाव सासए पंडिए पंडियत्तं असासयंसेवभंते सेवं मंतेत्ति।२९७1-297 सत्तमेसते अनुमो उद्देसो समतो. -: न च मो-उ हे सो:(३७१) असंबुडे णं भंते अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पमू एगवण्णं एगरूवं विउवित्तए नो इणढे समढे असंवुडे णं भंते अणगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वितए हंता पभू से णं मंते किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुब्वइ तत्थगए पोग्गले परिवाइता विकुबइ अन्नत्यगए पोग्गले परियाइत्ता विकुब्बइ गोयमा इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुब्यइ नो तत्यगए पोग्गले परिवाइत्ता विकुब्बइ नो अन्नत्यगए पोग्गले परियाइत्ता विकुम्बइ एवं एगवणं अनेगरूवं अनेगवणं एगसवं अनेगवणं अनेगरूवं चउभंगो असंवुडे णं भंते अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू कालगं पोग्गलं नीलगपोग्गलत्ताए परिणापेत्तए नीलगं पोग्गलं वा कालगपोगलत्ताए परिणामेत्तए गोयमा नो इणढे समढे परियाइत्ता पभूजाव- असंवुडे णं भंते अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू निद्धपोग्गलं लुक्खपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए लुक्खपोग्गलं वा निद्धपोग्गलत्ताएपरिणामेत्तए गोयमा नो इणढे समढेपरियाइत्ता पभूसे णं भंते किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति अन्नत्यगए पोग्गले परियाइता परिणामेति गोयमा इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति नो तत्थगए पोग्गले परियाइता परिणापेति नो अन्नस्थगएपोग्गले परियाइत्ता परिणामेति।२९८1-298 (३७२) नायमेय अरहया, सुयमेयं अरहया विण्णायमेयं अरहया महासिलाकंटए संगामे महासिलाकंटएणं मंते संगामे वट्टमाणे के जइत्या के पराजइत्या गोयमा यज्जी विदेहपुत्तेजइत्या नव मलई नव लेच्छई कासी-कोसलगा अलारस वि गणरायाणो पराजइस्था तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उवडियं जाणित्ता कोडुंबिय-पुरिसे सद्दाचेइ सद्दावेत्ता एवं वया,सीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया उदाई हस्थिरायं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिर्णि सेणं सण्णाहेह सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिणह तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हडतुद्वचित्तमादिया जाव मत्थए अंजलि कडु एवं सामी तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति पडिसुणित्ता खिप्पामेव छेयायरियोवएस-मति-कप्पणाविकप्पेहिं सुनिउमेहिं उज्जलणेवस्थ-हव्व-परिवच्छियं सुसनं जाव भीमं संगामियं अओझं उदाई हत्थिरायं पडिकप्पेति हयगय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिसेणं] सण्णाति सण्णाहेत्ताजेणेव कूणिए राया तेणेबउवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल[परिग्गहियं दसनह सिरसावत्तं मत्यए अंजलिं कट कूणियस्स रण्णो तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति तए णं से कूणिए राया जेणेव मज्जणघरं तेणेव For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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