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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - ७/-14/३६५ -: अमो-उसो :(३.५) छउमत्येणंभंते मणूसे तीयामणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं केवलेणं संवरेणं केवलेणं बंभचेरवासेणं केवलाहिं पवयणमायाहिं सिझिसु युझिसु मुन्चिंसु परिनिव्वाइंसु सव्वदुक्खाणं अंतं करिसु गोयमा नो इणद्वे समढे जाव- से नूणं मंते उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्यु ति वत्तव्वं सिया हंता गोयमा उप्पन्नानाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्युत्ति वत्तव्यं सिया।२९२२-292 (३५६) से नूणं मंते हत्यिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे हंता गोयमा हत्यिस्स य कुंथुस्स य समे चेवजीवे से नूर्ण भंते हत्थीओ कुंयू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव एवं अप्पाहारतराए चेव अप्पनीहारतराए चेव अप्पुस्सासतराए चेव अप्पनीसासतराए चेव अप्पिड्डितराए चेव अप्पमहतराए चेव अप्पअइतराए चेय कूयूओ हत्यी महाकम्मतराए चैव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महाहारतराएचेव महानीहारतराए चेव महाउस्सासतराए चेव महानीसासतराए चेव महिड्वितराए चेव महामहतराए चेव महसुइतराए चेव हंता गोयमा हत्यीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेब कुंयूओ वा हत्यी महाकम्मतराए चेव हत्यीओ कुंयू अप्पकिरियताए चेव कुंथूओ वा हत्यी महाकिरियतराए चेव हत्थीओ कुंथू अप्पासवतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महासवतराए चेव एवं आहारनीहार-उस्सास-नीसास-इढि-महजुइएहिं हत्यीओ कुंथू अप्पतराए चेव कुंथूओ वा हत्यी महातराए चेव से केण्डेणं भंते एवं वुन्नइ-हत्थिस्स यकुंयूस्स य समे चेव जीवे गोयमा से जहानामए कूडागारसाला सिया-दुहओ लित्ता गुता गुत्तदुवारा निवारा निवायगंभीरा अहणं केइ पुरिसे जोइंवदीवंव गहायतं कूडागारसालं अंतो-अंतोअणुपविसइ तीसे कूडागारसालाए सब्बतो समंता धणनिचिय-निरंतर-निच्छिड्डाई दुवार-वयणाई पिहेति तीसे कडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए तं पइवं पलीवेज्ञा तए णं से पईदे तं कूडागारसालं अंतो-अंतो ओमासइ उज्जोवेइ तवति पभासेइ नोचेवणंबाहि अहणं से पुरिसे तंपईवंशरएणं पिहेजातएणंसे पईवे तं इहरयं अंतो अंतो ओभासेइ उनोवेइ तवति पमासेइ नो चेव णं इडरगस्स बाहिं नो चेव णं कूडागारसालं नो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं एवं-गोकिलिंजेणं पछियापिडएणं गंडमाणियाए आढएणं अद्धादएणं पत्यएणं अद्धपत्यएणं कुलवेणं अद्धकुलेणं चाउमाइयाए अहभाइयाए सोलसियाए बत्तीसियाए चउसट्टियाए अहणं पुरिसे तं पईवं दीवचंपएणं पिहेला तए णं से पदीवे दीवचंपगस्स अंतो-अंतो ओभासति उजओदेइतवति पमासेइनो घेवणं दीवचंपगस्स बाहिं नो वेवणं चउसद्वियाए बाहिं नोचेवणं कूडागारसालं नो चेवणं कूडागार सालाए बाहिं एवामेव गोयमा जीवे विजंजारिसयं पुब्बकम्पनिबद्धं बोदिं निव्वत्तेइंतं असंखेल्जेहिंजीवपदेसेहिं सचित्तीकरेइ-खुड्डियं वा महालियंवा से तेणटेणं गोयमा एवंबुच्चइ-हत्यिस्स यकुंथुस्सयसमे चेवजीवे।२९३५-293 (३६७) नेरइयाणं भंते पावे कम्मे जे य कडे जे य काइजे य कजिस्सइ सब्बे से दुक्खे जे निजिण्णेसे सुहे हंता गोयमानेरइयाणंपावे कम्मे जेयकडे जेवकजइसब्वेसे दुक्खे जेनिजिण्णे से सुहे एवंजाव वेमाणियाणं।२९४|-294 (१५८) कतिणं भंते सण्णाओ पन्नत्ताओ गोयमा दस सण्णाओ पन्नत्ताओ तंजहा-आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा कोहसण्णा माणसण्णा मायासण्णा लोमसण्णा लोगसण्णा ओहसण्णा एवं जाव वेमाणियाणं नेरइया दसविहं वेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति तं जहा For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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