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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ भगवई - ७/-/२/३३९ भवति एवं खलु से सुपधक्खायई सव्यपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पधक्खायमिति बदमाणे सद्यं भाप्त भासद नो मोसं भासं मासइ एवं खलु से सनवादी सब्बपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं तिविहं तिविहेणं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मे अकिरिए संवुडे एगंतपंडिए यावि भवति से तेणद्वेणं गोयमा एवं बुच्चइ-सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पत्रक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपञ्चक्खायं भवति सिय दुपचक्खायं भवति।२७०1-270 (३४०) कतिविहे णं भंते पच्चक्खाणे पनते गोयमा दविहे पच्चस्खाणे पन्नत्ते तं जहामूलगुणपञ्चंक्खाणे य उत्तरगुणपच्चक्खाणे य मूलगुणपञ्चक्खाणे णं मंते कतिविहे पन्नते गोयमा दुविहे पन्नते तं जहा-सव्यमूलगुणपञ्चक्खाणे य देसमूलगुणपञ्चक्खाणे य सव्वमूलगुणपत्रक्खाणे णं भंते कतिविहे पन्नत्ते गोयमा पंचविहे पन्नत्ते तं जहा-सब्याओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरपणं सब्याओ अदिन्नादाणाओ बेरमणं सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं देसमूलगुणपन्चक्खाणे णं मंते कतिविहे पन्नत्ते गोयमा पंचविहेपनत्ते तं जहाथूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं [थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं थूलाओ अदिन्नादाणाओ वेरमण थूलाओ मेहुणाओ वेरमण थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं उत्तरगुणपच्चरखाणं णं भंते कतिविहे पनते उत्तरगुणपन्चक्खाणे णं भते कतिविहे पन्नते गोयमा दुविहे पन्नत्ते तं जहा-सव्युतरगुणपचक्खाणे य देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे य सव्वुतरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते कतिविहे पन्नत्ते गोयमा दसविहे पन्नत्ते तं जहा।२७१-११-271-1 (३४१) अणागयमइक्कंतं कोडीसहियं नियंटियं चेव सागारमणागारं परिमाणकडं निरवसेसं संकेयं चेव अद्धाए पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥५४||-54 (३४२) देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते कतिविहे पन्नत्ते गोयमा सत्तविहे पन्नते तं जहा दिसिव्वयं उवभोगपरिभोगपरिमाणं अणत्थदंडवेरमणं सामाइयं देसावगासियं पोसहोववासो अतिहिसंविभागो अपच्छिममारणंतियसलेहणाझूसणाराहणता ।२७१/-21 (३४३) जीवा णं मंते किं मूलगुणपच्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपच्चक्खाणी गोयमा जीवा मूलगुणपञ्चक्खाणी वि उत्तरगुणपञ्चक्खाणी वि अपच्चक्खाणी वि नेरइया णं भंते किं मूलगुणपञ्चक्खाणी पुच्छा गोवमा नेरइया नो मूलगुणपञ्चक्खाणी नो उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपच्चक्खाणी एवं जाय चउरिदिया पंचिदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा जीवा वाणमंतर-जोइसिय-वेमागिया जहा नेरइया एएसि णं भंते जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं उत्तरगुणपच्चक्खाणीणं अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा गोयम सव्यत्योबा जीवा मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपचक्खाणी असंखेनगुणा अपचक्खाणी अनंतगुणा एएसिणं भंते पंचिदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपत्रक्खाणी उत्तरगुणपत्रस्खाणी असंखेनगुणा अपनक्खाणी असंखेनगुणा एएसि णं मंते मणुस्साणं मूलगुणपञ्चक्खाणीणं पुछा गोयमा सव्वस्थोवा मणुस्सा मूलगुणपञ्चक्खाणी संखेज्जगुणा अपञ्चक्खाणी असंखेनगुणा जीवा णं भंते किं सब्बमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपच्चक्खाणी अपचक्खाणी गोयमा जीवा सव्वमूलगुणपत्रक्खाणी वि अपञ्चक्खाणी वि नेरइयाणं पुच्छा गोयमा नेरइया नो सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणी नो देसमूलगुणपन्चक्खाणी अपचक्खाणी एवं जाव चउरिदिया पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा गोयमा For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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