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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - ६ /-/ ४ / २८६ नोभवसिद्धिय-नोअभवसिद्धिय-जीव सिद्धेहिं तियभंगी सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो असण्णीहिं एगिदियवज्जो तियभंगो नेरइयदेवमणुएहिं छटभंगो नोसण्णि-नो असण्णि-जीव-मणुय-सिद्धेहिं तियभंगो सलेसा जहा ओहिया कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तियभंगो नवरं पुढविक्काइए आउवणफतीसु छब्पंगा पम्हलेस्स- सुकूकलेस्साए जीवादिओ तियभंगो अलेसेहिं जीव- सिद्धेहिं तियभंगी मणुएसु छटभंगा सम्मद्दिट्ठीहिं जीवादिओ तियभंगो विगलिंदिएसु छटमंगा मिच्छदिडीहिं एगिंदियबञ्जो तियभंगो सम्मामिच्छदिट्ठीहिं छब्भंगा संजएहिं जीवादिओ तियमंगो अस्संजएहिं एगिदियवज्जो तियमंगो संजयासंजएहिं तियभंगो जीवादिओ नोसंजय-नी असंजय-नोसंजयासंजय-जीवसिद्धेहिं तियभंगी सकसाईहिं जीवादिओ तियभंगो एर्गिदिए अभंगकं कोहकसाईहिं जवेगिंदियवज्जो तियभंगो देवेहिं छदभंगा माणकसाई - मायकसाईहिं जीवेगिंदिवयचो तियमंगो नेरइयदेवेहि छदभंगा लोभकसाईहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो नेरइएसु छदभंगा अकसाई जीव- मणुएहिं सिद्धेहिं तियभंगो ओहियनाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे जीवादिओ तियभंगो विगलिंदिएहिं छभंगा ओहिनाणे मणपजवनाणे केवलनाणे जीवादिओ तियभंगो ओहिए अन्नाणे मइअन्नाणे सुयअन्नाणे एगिंदियवज्जो तियभंगी विभंगनाणे जीवादिओ तियभंगी सजोगी जहा ओहिओ मणजोगी वइजोगी कायजोगी जीवादिओ तियभंगो नवरं कायजोगी एगिंदिया तेसु अभंगयं अजोगी जहा अलेस्सा सागारोवउत्त- अणागारीवउत्तेहिं जीवेगिदियो तियभंगो सवेदगा जहा सकसाई इत्थवेदग - पुरिसवेदग-नपुसंगवेदगेसु जीवादिओ तियभंगो नबरं नपुंसगवेदे एगिदिएस अभंगयं अवेदगा जहा अकसाई ससरीरी जहा ओहिओ ओरालिय-वेउब्वियसरीराणं जीवेगिंदियaat तियभंगो आहारणसरीरे जीव मणुएसु छब्भंगा तेयग-कम्मगाई जहा ओहिया असरीरेहिं जीव-सिद्धेहिं तियभंगो आहारपद्धत्तीए सरीरपत्तीए इंदियपत्तीए आणापाणपत्तीए जवेगिंदियवज्जो तियभंगो भासा -मणपञ्जतीए जहा सण्णी आहार- अपजत्तीए जहा अणाहारगा सरीर अपजत्तीए इंदिय- अपत्तीए आणापाणअपजत्तीए जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो नेरइय-देव- मणुएहिं छटभंगा भासामण अपजत्तीए जीवादिओ तियभंगो नेरइय-देव- मणुएहिं छटमंगा ।२३८1-238 (२८७) सपदेसाहारग-भविय-सण्णि-लेसा-दिट्ठि-संजय कसाए नाणे जोगुवओगे वेदे य सरीर - पज्जत्ती ॥४१॥-41 (२८८) जीवा गं भंते किं पञ्चक्खाणी अपचक्खाणी पचक्खाणापचक्खाणी गोयमा जीवा पचक्खाणी व अपचक्खाणी वि पञ्चक्खाणापचक्खाणी वि सव्वजीवाणं एवं पुच्छा गोयमा नेरइया अपचक्खाणी जाव चउरिंदिया सेसा दो पडिसेहेयव्या पंचिंदियतिरिक्खजोगिया नो पञ्चक्खाणी अपचक्खाणी विपचक्खाणा-पचक्खाणी वि मणूसा तिण्णि वि सेसा जहा नेरइया, जीवा णं भंते किं पञ्चक्खाणं जाणंति अपञ्चक्खाणं जाणंति पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणं जाणंति गोयमा जे पंचिंदिया ते तिण्णि वि जाणंति अवसेसा पचक्खाणं न जाणंति अपञ्चक्खाणं न जाणंति पच्चक्खाणापच्चक्खाणं न जाणंति जीवा णं भंते किं पचक्खाणं कुव्यंति अपचक्खाणं कुर्व्वति पञ्चक्खाणापचक्खाणं कुव्वंति जहा ओहिओ तहा कुव्वणा जीवा णं भंते किं पचक्खाणनिव्यत्तियाउया अपद्य क्खाणनिव्यत्तियाउया पचक्खाणापत्रक्खाणनिव्यत्तियाउया गोयमा जीवा य वेमाणिया य पचक्खाणनिव्वत्तियाउया तिणि वि अवसेसा अपचक्खाणनिव्यत्तियाउया । २३९-१1-239-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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