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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छमं सतं - उद्देसो-३ ११३ आउगवजाओ सत्त वि आउगं हेडिल्ला दोभवणाए उवरिल्ले न बंधइ नाणावरणिचं णं भंते कम्मं कि भासए बंधइ अभासए बंधइ गोयमा दो वि भयणाए, एवं वेदणिजवनाओ सत्त वि वेदणिजं भासए दंधइ अभासए भयणाए, नाणावरणिजं णं भंते कम्मं किं परित्ते बंधइ अपरित्ते बंधइ नोपरित्ते नोअपरिते बंधइ गोयमा परिते भयणाए अपरित्ते बंधइ नोपरित्ते नोअपरित्ते न बंधइ एवं आउगवजाओ सत्त कम्पप्णगडीओ आउयं परिते वि अपरित्ते वि भयणाए नोपरित्ते नोअपरिते न बंधइ नाणावरणिज्जं णं भंते कम्मं किं आभिणिबोहियनाणी बंधइ सुयनाणी बंधइ ओहिनाणी बंधइ मणपजवनाणी बंधइ केवलनाणी बंधइ गोयमा हेडिल्ला चत्तारि भयणाए केवलनाणी न बंधइ एवं वेदणिजवनाओ सत्त वि, वेदणिनं हेडिल्ला चतारि बंधति केवलनाणी भयणाए, नाणावरणिनं णं भंते कम्मं किं मइअन्नाणी बंधइ सुयअन्नाणी बंधइ विभंगनाणी बंधइ होयमा आउगवज्जाओ सत्तवि बंधति आउगं भयणाए, नाणावरणिनं णं भंते कम्पं कि मणजोगी बंधइ बइजोगी बंधइ कावजोगी बंधइ अजोगी वंधइ गोयमा हेछिल्ला तिणि भवणाए अजोगी न बंधइ एवं वेदणिजबजाओ सत्त वि, वेदणिज्नं हेछिल्ला बंधंति अजोगी न बंधइ नाणावरणिज्जं णं भंते कप्पं कि सागारोवउत्ते दंधइ अणागारोवउते बंधइ गोयमा अट्ठसु वि भयणाए नाणावरणिज्जणं भंते कम्मं किं आहारए बंधइ अणाहारए बंधइ गोयमा दो वि भयणाए एवं वेदणिजाउगवत्राणं छहं वेदणिनं आहारए बंधइ अणाहारए भयणाए आउए आहारए भयणाए अणाहारए न बंधइ, नाणावरणिलं गं भंते कम्मं किं सुहमे बंधइ बादरे बंधइ नोसहमे नोबादरे बंधइ गोयमा सुहुमे बंधइ बादरे भयणाए नोसुहमे नोबादरे न बंधइ एवं आउगवजाओ सत वि आउगं सुहमे बादरे भयणाए नोसुहुमे नोबादरे न बंधइ नाणावरणिज्नं णं भंते कम्मं किं चरिमे बंधइ अचरिमे बंधइ गोयमा अट्ठ विभयणाए।२३६।-236 (२८५) एएसि गंभंते जीवाणं इत्थीवेदणाणं पुरिसवेदगाणं नपुंसगवेदगाणं अवेदगाण य कयरे कयरेहितो [अप्पा या बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा) गोयमा सव्वत्योवा जीवा पुरिसवेदगा इस्थिवेदगा संखेनगुणा अवेदगा अनंतगुणा नपुंसगवेदगा अनंतगुणा एएसिं सव्येसि पदाणं अप्प-बहुगाई उच्चारेयव्वाइं जाव सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा चरिपा अनंतगुणा सेवं भंते सेवं भंते त्ति:२३७!-237 . हे सते तइओ उद्देसो सपत्तो. -: च उ त्यो उ सो :-- (२८६) जीवेणं भंते कालादेसेणं किं सपदेसे अपदेसे गोयमा नियमा सपदेसे नेरइएणं भंते कालादेसेणं किं सपदेसे अपदेसे गोयमा सिय सपदेसे सिय अपदेसे एवं जाव सिद्धे जीवा णं भंते कालादेसेणं किं सपदेसा अपदेसा गोयमा नियमा सपदेसा नेरइया णं भंते कालादेसेणं किं सपदेसा अपदेसा गोयमा सब्वे वि ताव होजा सपदेसा अहवा सपदेसा य अपदेसे य अहवा सपदेसा य अपदेसा य एवं जाव यणियकुमारा पुढविकाइया णं भंते किं सपदेसा अपदेसा गोयमा सपदेसा वि अपदेसा वि एवं जाव वणफइकाइया सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा आहारगाणं जीवेगिदियवतो तियभंगो अणाहारगाणं जीवेगिंदियवना छब्धंगा एवं भाणियव्वा - सपदेसा वा अपदेसा या अहवा सपदेसे य अपदेसे अहवा सपदेसे य अपदेसा य अहवा सपदेसा य अपदेसे य अहवा सपदेसा य अपदेसा य सिद्धेहिं तियभंगो भवसिद्धिया अभवसिद्धिया जहा ओहिया For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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